घनघोर पहाड़ी   (अज्ञानी)
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Joined 29 May 2021


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जिस रोज़ तुम्हें पाया था,
उसी रोज़ खोने की शुरुआत हो चली थी शायद।
धीरे-धीरे, आहिस्ता-आहिस्ता,
हर लम्हा तुम दूर जा रहे थे।
एक बेचैनी एक कसमसाहट
थी हर पल साँसों में तुम्हारी।
'आज़ादी' ही बेड़ियाँ बन गई थीं
पैरों की।
'प्यार' का ज़िक्र भी जैसे
दम घोटे दे रहा था।
'भरोसा' जैसे कुरेद रहा हो भीतर ही भीतर।
हमारे ही 'सपने'
कर दिया करता थे तुम्हें..खौफज़दा।
बहुत लंबा सफर किया मैंने भी
सवाल-जवाब करते..खुद से।
बचकाना सवाल जवाब।
ऐसा क्यों, मेरे साथ ही क्यों, वगैरह-वगैरह।
खैर अब समझ आता है,
सब सवालों के जवाब नहीं होते,
और सब जवाबों के मायने भी नहीं।
अब तुम्हारा दूर होना भी
वाजिब जान पड़ता है और
पास आना भी बेमायने।
अब जब
न वो प्यार है, न भरोसा न सपने ही
फिर अब...बेचैनी का सबब क्या है।— % &

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चोरों का कानून है, चोर चलावें राज।
संविधान पड़ा यह जेब में, बाबा मुँह मल दी राख।।— % &

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विद्या से बड़ा न वरदान कोई
तेरे अतिरिक्त, नहीं ज्ञान कोई
जो भी हूँ मैं अब, सब तेरी है छाया
हूँ करबद्ध मुझमें, न अभिमान कोई— % &

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तेरे वादों को याद करता हूँ,
जाने क्यों दिल भर आता है
ख़ुदग़र्ज़ी की जब भी बात चलती है,
तू ही मुझे क्यों याद आता है— % &

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मेरा मानना है ज़िम्मेदार लोग ही दुनिया के सबसे खूबसूरत लोग होते हैं।— % &

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अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति को लगे घावों को अंत में आध्यात्म ही भर पाता है।— % &

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वही ममता, वही करूणा,
वही आँचल की कोमल छाँव ढूँढ़ता है।
बाप को बेटी में सिर्फ बेटी नहीं दिखती,
उसकी आँखों में वो अपनी माँ ढूँढ़ता है।।— % &

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ज़माने के साथ चलना तो साधारण चरित्र हुआ,
साहसी तो वे हैं जो
लीक से अलग चलने का मार्ग अपनाते हैं।— % &

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हम आज जहाँ भी मौजूद हैं, यदि, वहाँ खुश नहीं रह पाते हैं, तो यकीन मानिये,
हम जहाँ पहुँचकर खुश होने का स्वप्न देख रहे हैं, वह खुशी भी, क्षणिक से अधिक, कुछ न होगी— % &

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ख़ुदा का नाम होता है।
इबादत हो नहीं पाती
सजदा नाकाम होता है।— % &

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