माँ की क़ैद में हैं सारे भगवान,
मुझे जब भी बुरी नज़र लगी पल्लू के कोने से झाड़ दी
©कहानीकार
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शिक्षा के मंदिर में दंगे,
ऐसा भारत कब सोचा?
कुर्सी वाले हो गए नंगे,
ऐसा भारत कब सोचा?
शीशे तोड़े, सर भी फोड़े
सब कुछ चकनाचूर किया
इसके बाद में हर-हर गंगे
ऐसा भारत कब सोचा?-
जिम्मेदारियाँ सारी मैं उठा लेता हँसकर
पापा आपके जाने से सर की छत चली गई-
चुपचाप से मेरा सारा आसमान छीन लिया,
जमीं कर दी भारी, हर अरमान छीन लिया,
किससे अब क्या कहूँ, सबके अपने नज़रिए हैं,
पापा को छीनकर तूने पूरा ख़ानदान छीन लिया।-
दरवाज़े की तरह करता हूँ इंतज़ार,
कोई दस्तक देता है, तभी बोलता हूँ मैं!-
मोहब्बत जुदाई का पल लाने को है
ऐ ख़ुदा देख, कोई तो जाने को है-
तिरे हर हर्फ़ को खुदा का फ़रमान माना,
दिल ने कुछ ना कहा बस तुझे अरमान माना,
तिरे वास्ते होगा मज़ाक़ तो मैं क्या करूँ,
मैंने तो तेरे कहे को ही गीता औ कुरआन माना!-
हुई हो ख़ता कोई तो माफ़ कर देना,
हो जो ज़िंदगी ख़फ़ा तो माफ़ कर देना,
बनने लगे बोझ तो उतार देना आँखों से,
हुआ जो बेवफ़ा कोई तो माफ़ कर देना!
-घनश्याम-