कैसी स्वतंत्रता है ये?है ये कैसी आजादी?
आजाद नहीं जहाँ ,आज भी आधी आबादी,
कहने को पन्नों पर है,आजादी के कई मायने,
पर सच में धरा पर ,है क्या सच्ची आजादी?
कैसी स्वतंत्रता है ये?है ये कैसी आज़ादी?
इस स्वतंत्र भारत में,जहाँ नारियों, बेटियों को,
खुली हवा में जी भरके,नहीं है सांस लेने की आज़ादी,
गिद्ध निगाहों , भेड़ियों का, होता जहाँ पग पग पर सामना,
आज़ादी तो बस उन्हीं की है,
नहीं है तो बस,आधी आबादी की आजादी,
कैसी स्वतंत्रता है ये?है ये कैसी आज़ादी?
एक सवाल आप सब से है मेरा,
क्या सच में हम आजाद हो गए हैं?
क्या सच में हमें मनानी चाहिए,
आज़ादी का पर्व , स्वतंत्रता दिवस?
मेरी नज़र में तो हम आज भी गुलाम हैं,
सड़ी गली गिरी हुई मानसिकता के......
✍🏻 गीता सिंह
-
करें योग ,रहें निरोग,
सुबह की सैर हो या,
योग और प्राणायाम,
बैठें लगा कर चौकड़ी,
करें फिर आसन तमाम,
तन सुंदर, मन प्रसन्न,
हो जाएगा सबका,
करेंगे जो सभी ,
समय का सदुपयोग,
और शरीरिक व्यायाम,
तो हो जाएगा सारे विश्व के,
रोगों का काम तमाम!!-
माँ
माँओं की होती है एक अलग ही दुनिया,
नियम भी उनके अपने बनाये होते हैं,
दुनिया का कोई भी नियम उन पर हावी नहीं होता,
अपनी ही दुनिया में होती हैं मगन ,मदमस्त,
उनकी खुशियों का कोई पैमाना नहीं होता,
वो तो असीम ,अनंत आकाश जितना होता है,
बच्चों के लिए ,बच्चों पर हर पल न्योछावर,
उनकी ममता का कोई मोल नहीं होता,
वो तो अनमोल ममत्त्व की धनी होती हैं,
दुनिया में जितनी भी माएँ हैं न ,
उन सबकी एक अलग ही कहानी है,
अलग ही रवानी है,
उन्हें समझने के लिए तो माँ बनना पड़ता है,
क्योंकि माँ ही तो सिर्फ माँ होती है!!
-
नववर्ष के पावन दिन ही,
ब्रह्मा जी ने की शुरुआत,
सृष्टि रचा ,बना इतिहास,
विक्रमादित्य ने नववर्ष मनाया,
श्रीराम जी ने बाली को मार गिराया,
प्रकृति ने भी बदली करवट,
मौसम ने फिर ली अंगड़ाई,
खेतों में फसलें लहराई ,
वसंतीय नवरात्र की हुई शुरुआत,
घर घर में नवदुर्गा हैं पधारीं,
खुशियों के पटाखे फोड़ो सब आज,
आओ मनाएं नववर्ष हम आज!!
-
जीने की राह
**********
रोज आगे बढ़ती हूँ,
नदी की भाँति मैं,
पत्थरों के बीच से ,
संभलती, मचलती,
उतराती, इठलाती,
गिरती, उठती,
लेकिन न कभी रुकती,
न कभी थमती,
हर रोज एक नई उमंग,
हर रोज एक नई तरंग,
अपने में भरती,
और चल पड़ती।
जब तक जीवन है,
अपने लिए जीने की राह बनाती!!
-
तन से कोमल ,मन से मजबूत,
घर हो या बाहर हर मोर्चे पर अडिग,
देश हो या विदेश, गांव हो या शहर,
यत्र तत्र सर्वत्र ,तू ही तो है नारी,
समाज की नई पहचान हमारी!!-
माँ सरस्वती ज्ञानदायिनी,
सुंदर सौम्य वीणावादिनी,
चारों वेद की ज्ञाता तू है,
विद्या बुद्धि की दाता तू है।
तेरी कृपा दृष्टि से माता ,
रत्नाकर वाल्मीकि बन जाता,
जो मनुज भी तुमको ध्याता,
तेज,प्रकाश, प्रभाव है पाता,
नमन है ,हे 'माँ शारदे' तुझको,
दे दो विद्या बुद्धि का दान मुझको।।
✍🏻 गीता सिंह
-
अटल प्रतिज्ञा पूरी हुई,
जय श्रीराम,जय जय श्रीराम,
बरसों की तमन्ना पूरी हुई,
जय श्रीराम, जय जय श्रीराम,
हर घर में भगवा लहरा गया,
जय श्रीराम, जय जय श्रीराम,
पूरा देश राममय हो गया,
जय श्रीराम ,जय जय श्रीराम,
मनमोहक 'राम जी' घर आये,
जय श्रीराम ,जय जय श्रीराम,
सत्य की जीत और असत्य की हार हुई,
जय श्रीराम ,जय जय श्रीराम!!
-
उत्तरायण हो रहे ,भास्कर को वन्दन,
प्रकृति में हो रहा, हर ओर नया स्पंदन,
हवा ने रुख बदला है आज से,
पतंगों को देखो,कैसे उड़ रहीं शान से,
हर घर तिल गुड़ की ,
सौंधी खुशबू से महक उठा है,
शरद ऋतु की विदाई और,
लंबे दिनों की शुरुआत से,
मन मन्दिर फिर चहक उठा।
आओ अपने भीतर भी तिल के गुण,
और गुड़ की मिठास लाएं,
भगवान भास्कर का तेज,
और पतंगों सदृश ऊँचाई पाएं!!
✍🏻 गीता सिंह
आपसभी को मकरसंक्रांति की ढेरों शुभकामनाएं..
🌷🌷🌼🌺🌷🌺🌼🌷🌼🌺🌷🌺🌼🌷🌷
-
कैलेंडर बदला, साल बदला,
तारीख़ का हर हाल बदला,
न बदले तो सिर्फ हमसब,
न बदली हमारी फितरत!!
आप सभी को आंग्ल नववर्ष की
ढेरों शुभकामनाएं!! 🌷🌷🌷-