विवाह के बाद स्त्रियां किसी दरवाजे से झूलती हुई सांकर हो जाती है रोज खुलती हैं और लटकती हुई दरवाजे से झांक लेती हैं और फिर बंद हो जाती है क्योंकि उन्हें बाहर जाने की अनुमति नहीं होती।
और जो सांकर नहीं होना चाहतीं बंधनों को तोड़कर अपने स्व में रमना चाहती हैं खुलकर जीना चाहती हैं वे चरित्रहीन हो जाया करती हैं।
मैं कहना चाहूंगी दुनिया की हर औरत चरित्रहीन होना स्वीकार करें क्योंकि साकर भी एक दिन जंग खाकर उखाड़ कर फेंक ही दी जाती है।-
प्रेम और विरह के मध्य पे पेंडुलम सी झूलती स्त्रियां अचानक किसी दरवाज़े की सांकल हो जाया करती हैं
जो रोज़ खुलती और बंद होती हैं लेकिन उसके बाहर नहीं जाती
गीता शर्मा रज़ा-
उतर जाते हैं इश्क के समंदर में वो भी
जिन्हें मालूम नहीं यहां डूबने का रिवाज है तैरने का नहीं-
सुना है
इंसान के पास जो होता है या उसे दिया जाता है
वही वह दूसरों को देता है
लेकिन मुझे कुछ बेहतर देकर
परंपरा बदलना है-
'तुमने देखा होगा '
बरसता है जब मेघ से पानी
उसे समग्र चाहिए
धूप पसरती है सर्वांग में
और हवा तो बरबस ही
एकाधिकार मनवा लेती है
तब भी नहीं समझे कि
संसार में तुम्हारा कुछ नहीं-
जीवन भर संसार जीने की वजहों पर
प्रश्नचिन्ह लगाता रहता है
और मरने के बाद मरने की वजह पर...
😔🤔
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ग़र बढ़ाना है तो हाथ बढ़ाओ यारा
बात बढ़ाने को तो हर शख्स तैयार खड़ा है-
कंटीले पेड़ ,बंजर भूमि
रेगिस्तान ,और वे समस्त
सौंदर्यविहीन प्राकृतिक रचनाएं
पैरों में दबने को रची गई दूब
छोट- मोटे जीव
जिनके जीवन और मत्यु
का मध्यांतर
विज्ञान की किताब में
दर्ज होने के पूर्व ही
किसी पांव ने रौंद दिया
वे अस्तित्व की कौन सी परिभाषा
माने जाएंगे???
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सुनो
निपटा लो तुम अपने जरूरी और गैर जरूरी काम
समेट लो अपने बिखरे हुए कारखानों को उपस्थिति दर्ज करा दो अपनी उन समस्त वांछित पलों को जहां तुम्हें कभी भी ना होने का कोई खेद रह गया हो मैं प्रतीक्षारत हूं
मैं कोई दिया नहीं
जो बुझ जाऊं
मैं सुदीप्ता हूं आंखों में नहीं तो प्राणों में सुलगती रहूंगी।
लेकिन
अधूरे मत आना कभी
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अस्तित्व की लड़ाई में विजेता कौन
'मैं 'सिर्फ 'मैं
हां मगर 'मैं 'कौन ????-