मर गई वो सारी भावनाएं
जिन्हें नहीं सुना गया उनके वक्त पर....
19/Dec/2024-
तुमसे इश्क़ कुछ इस तरह का है..
क्या वो सावन की पहली बरसात सा है...
या सर्दी की ठंडी रात सा है...
या कहूं गर्मीयो की तपती धूप में एक प्यास सा है...
तुमसे इश्क कुछ इस तरह का है...
नदी में लहरती उन लहरों सा है,,,,
या समुंदर की रेत पर सुकून जैसा सा है...
तुमसे इश्क कुछ इस तरह का है
आसमान में चमकता वो चाँद जैसा है..
या धरती पर ओस की बूंद जैसा है...
कैसे कहूं तुमसे इश्क किस तरह का है...
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तलाश उन्हें भी थी
तलाश हमे भी थी...
फ़र्क बस इतना था
हमारी तलाश "उन" पर आकर खत्म हो गई
और उनकी तलाश "हम" पर आकर शुरू हो गई...-
कोई समझ पायेगा इस मिलन को
या देंगें बस एक झड़ती डाली का नाम...
तुम्हारा सादगी से यूं ह्रदय तक चले आना
व्याकुल थे इस मिलन को या निभाया है कोई फर्ज़ प्रिये...
न निभाया है कोई फर्ज प्रिये तुम मेरा ही हो स्वरूप प्रिये
है तुमसे अत्यंत प्रेम प्रिये हो नारी शक्ति का रूप प्रिये...
सूर्य की लालिमा सी तेज प्रिये, बहती धारा सी शांत प्रिये
हरियाली सी खुशहाल प्रिये प्रकृति सी प्रवर्तित प्रिये...
हो मेरा ही तुम अंग प्रिये है तुमसे प्रेम अनन्त प्रिये ।।-
जिस तरह इंतजार है हमे
काश उसे भी होता...
हमारी न मौजूदगी में
उसकी महफिल में ज़िक्र हमारा भी होता...
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संतुष्ट हूं मैं जो मिला उसी से
न शिकवा है न गिला किसी से...
रख लूंगी जो दोगे खुशी से
ज़हर घोलोगे.... तो मिलेगा भी किसी न किसी से....
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हां वो माँ नहीं है पर प्रेम करती है
हां वो माँ नहीं है पर हर बात की फ़िक्र करती है
हां वो माँ नहीं है पर मेरे अंतर्मन की खबर रखती है
हां वो मां नहीं है पर गुस्सा में सारा प्यार जताती है
हां वो माँ नहीं है पर दुनिया का सारा ज्ञान देती है
हां वो माँ नहीं है पर जरूरत से पहले सारी चीजें ले आती है
हां वो माँ नहीं पर अपनो से भी ज्यादा ख्याल रखती है
हां वो माँ नहीं है पर एक मिनट भी गुस्सा नही रह पाती है...
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...मेरी जिंदगी में बस वही थी...
...शायद उसकी जिंदगी में...
...मैं कहीं नहीं थी...
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चलो आज सुना ही देती हूं दास्तां हमारी
चलो आज उतार ही देती हूं समंदर की लहरों पर कहानी हमारी
जिसे पढ़ न सकेगा कोई लाख कोशिशों के बाद भी
वो दिखेंगी तुम्हें भी एक धुंधली याद सी
जब कभी बैठोगे तुम समंदर के किनारे पहाड़ पर
छुएंगी वो दास्तां लिखी लहरें तुम्हारे ज़मीर सर
हां शायद तब तुम्हें याद आयेगा वो अफसाना हमारा
या बहा दोगे तुम फीकी सी याद बनाकर उन लहरों को...
या बैठोगे घंटो याद कर उस रेत पर
चलो सुनायेंगे कभी कोई किस्सा उस समंदर की रेत पर...
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