कोई समझ पायेगा इस मिलन को या देंगें बस एक झड़ती डाली का नाम... तुम्हारा सादगी से यूं ह्रदय तक चले आना व्याकुल थे इस मिलन को या निभाया है कोई फर्ज़ प्रिये... न निभाया है कोई फर्ज प्रिये तुम मेरा ही हो स्वरूप प्रिये है तुमसे अत्यंत प्रेम प्रिये हो नारी शक्ति का रूप प्रिये... सूर्य की लालिमा सी तेज प्रिये, बहती धारा सी शांत प्रिये हरियाली सी खुशहाल प्रिये प्रकृति सी प्रवर्तित प्रिये... हो मेरा ही तुम अंग प्रिये है तुमसे प्रेम अनन्त प्रिये ।।