मत करना घमंड कि,
तूने किसी को बना दिया,
निस्वार्थ कर्म तो था नहीं तेरा,
जो उपकार माने कोई,
एक लालच, एक जाल सा बिछाकर,
अब पैसों के लिए तू रोई,
जो मदद ही करनी थी,
तो खुद का लालच, छोड़ दे,
सच बोलकर देख,
जो कोई तुझसे नाता जोड़ ले?
निहायत ही शर्मनाक है यह कर्म तेरा,
देख अब तुझे, क्या - क्या दिखाता है,
ख़ुद तेरा ही किया हुआ करम तेरा.
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When God give you some sense to help others, some potential to raise others and some guts to guide others then be humble, be his servant and not the arrogant and egoistic one who will definitely fall so badly that you can't help yourself.
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If GOD has chosen you as HIS instrument, don't misunderstood yourself as the SUPREME Himself.
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With gratitude in every breath I take,
We rise as one, for unity’s sake.
Wellbeing flows, our hearts aligned,
Abundance and peace, in soul and mind.
Prosperity grows in love we sow,
Together we rise, together we glow.
Financial freedom, dreams set free,
I awaken now — the highest me.
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कर्तव्य पथ पर चलकर देखो,
स्व भुलाकर, इस जगत में,
वयम् संवरण करके देखो,
सब कुछ मिल जाता है तब,
जब कुछ पाने की आस ना हो,
जब तक विचलित नहीं है मन,
पर सेवा परमार्थ में ,
तब तक कहाँ जीवन्त हैं हम,
जीवन के यथार्थ में,
श्वांस - श्वांस कर समर्पित,
मानवता का जीवन जी कर तो देखो,
टूट जाएंगे बंधन सारे,
मिल जाएग परम सुख,
केवल स्वयं को जानकर देखो।-
बाहर के कौतूहल से हटकर,
मन के भीतर झांके कौन...?
जहाँ सबको बस अपनी ही सुनाना है,
वहाँ किसी और की सुने कौन...?
मैं हूँ श्रेष्ट, बस मैं ही सर्वोत्तम हूँ,
तब दूजे को देखे कौन...?
अपनी ही धुन में घुम,
किन्तु अंतर्मन तक पहुंचे कौन...?
मन के मौन से होता आत्मज्ञान,
किन्तु मन के भीतर झांके कौन...?-
ईर्ष्या नहीं प्रशंसा कर
जब कोई कुछ कर दिखाए,
जब किसी की मेहनत रंग लाए,
प्रशंसा के दो बोलों से,
किसी का क्या घट जाएगा,
कहे गायत्री सुन लो खोल कान,
ईर्ष्या से बनता नहीं कोई महान,
सीमा नहीं किसी के लिए,
खुला सबके लिए वो,
अनंत आकाश समान,
बिना परिश्रम मिलता नहीं फल,
है दम तो तुम कर दिखलाओ यह कल....!-
असाध्य साध दिखाने को,
गगन सदृश लक्ष्य पाने को,
धरा पर जड़ें स्थापित कर अपनी,
सूर्य सी कांति पाने को,
स्वाध्याय की अग्नि में तपकर,
विशुद्ध स्वर्ण बन जाने को,
नित आंकलन ज़रूरी है,
तथा श्वासों की तारतम्यता के साथ,
निरंतरता ज़रूरी है....!
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