Gautam Shaurya   (Accidental law student)
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Writer and blogger by hobbies

( Central University of South Bihar)
Joined 12 September 2021


Writer and blogger by hobbies

( Central University of South Bihar)
Joined 12 September 2021
29 APR 2022 AT 18:56

सोचे जा रहा था मैं,
और सोचते ही जा रहा था,
सहसा ठिठक गया मन,
अनजानी सी आवाजें सुनी,
कुछ अपनापन सा लगा उसमें,
कुछ खोई सी नादानी भरी,
या मन का भ्रम था मेरा,
जो तत्क्षण उसको सच मान बैठा,

अब रोज आवाजें सुनता हूं,
अपनापन पहले से ज्यादा,
मन का भ्रम अब दूर भी है,
सच में ही सच मान बैठा हूं,
खुद खोकर नादान बैठा हूं,

बातों का क्या?
कभी दो शब्द मेरे,
बातों का क्या ?
कभी उनके बाते बहुतेरे,
नादानियों से ही सही,
हम बार बार खोते हैं,
और सच को भ्रम मानकर,
अपनापन संजोते हैं।।

~gauतम

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1 APR 2022 AT 22:18

कई नुक्स है इरादों में,
इरादों को कुबूल न कर पाता हूं,

तू किसी समंदर सी लगती है,
मैं किसी नाव सा डगमगाता हूं।।
~gauतम

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30 MAR 2022 AT 20:50



चंद उम्मीदों को नाकाम कर,
अनसुना कर जाना भी एक तरकीब है,
बंद रेत की मुठ्ठी सी,
बंध जाना भी एक तहजीब है,

फिर सरसरा कर गिर जाना,
व्यापक हो चमकना ,
रेत को मन में भा गई,
आह ! मुठ्ठी के पिंजरे से निकल ,
मैं पगडंडियों पर छा गई,
खुश होकर अपनी आजादी से,
कोस रहे उस पिंजरे की रुसवाई को,
एक बात उसको पता नहीं,
वो बस बातों से अनजान है,
जो मुठ्ठी तुम्हारे लिए बंधी थी,
उसी बंद मुठ्ठी में ही तो जान है,।।
~gauतम



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30 NOV 2021 AT 19:31

माह नवंबर ओस वाली ,
थोड़ी सी दिखी,
मंजिल की लाली,
दिवस ठीक से तो याद नहीं,
मन में थे, बातें बेख्याली,

माह दिसंबर भी ओस वाली,
बस मन में रह गई बाते बेख्याली,

जनवरी,फरबरी, मार्च और
मई में यादें मतवाली
अब भी मन में बाते ख्याली,

जून,जुलाई,अगस्त सितंबर,
थोड़ी सी दिखी,अम्बर की लाली,
क्षितिज धरा पर उतर चुकी थी,
झूम रहे थे बाते बेख्याली,

अक्टूबर, नवंबर बीत रहे हैं,
बाते ओस में शीत रहे हैं,
नमी सी आ गई अब बातों में,
थम सी गई है बाते बेख्याली,
शायद ,मिल चुकी अम्बर की लाली,
या, तमन्नाएं अकेली वाली!! ~Gautam



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27 DEC 2021 AT 9:51

जब ओस की बूंदों सा साथ आते हो तो ,घास सी ताजगी लगती है,
किसी सूरज के आने से जब बिछड़ जाती हो तो,बस नाराजगी लगती है।

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7 DEC 2021 AT 14:58

नापें जाएंगे समंदर इस कश्ती से,
अब नदी नाराज हों तो हों।।

~Gauतम

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18 NOV 2021 AT 20:30

धुंधली - धुंधली चांदनी की यादें,
खटकती है, आसमां रूपी मन को,
कि पूरी हो चांदनी तो,बात बन जाए,
कि पूरी हो याद तो , मुलाकात बन जाए,

धुंधली चांदनी की शीतलता,
खटकती है, पीपल रूपी तन को,
कि पूरी हो चांदनी तो ,आह बन जाए,
गर पूरी हो चांदनी तो ,
भटके हुए को राह मिल जाए!

दो विभाव की आरजू इतनी,
कि चांद की चांदनी बस खिल जाए
~©️Gauतम

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16 NOV 2021 AT 7:48

प्रातः वंदन , नित अभिनंदन,
ए मंजिल मैं कर नहीं सकता,
सिध्दत से चाहत है तुम्हारी,
पर, ए मंजिल तुम्हारे लिए,
गुलामों की गली से,गुजर नहीं सकता।

गर तुम पहाड़ों सी चट्टान हो,
तो मैं भी मांझी जैसा महान हूं,
गर तुम पत्थर का देवता हो,
तो मैं भी कुशल इंसान हूं,

मैं वार हमेशा करूंगा,
तुम्हारी आह एक ना सुनूंगा,
जब तक तुम मेरी मंजिल हो,
तुम्हें मापने की राह चुनूंगा ।

पर ए मंजिल तुम्हारे लिए,
गुलामों की गली से गुजर नहीं सकता !! ©️Gauतम

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3 NOV 2021 AT 21:59

चुप हो जाना यूं गुनगुनाकर,
क्या किसी की कमी खल गई?
चंचल विमल निरा मन में,
क्या यादें मचल गई?

वक़्त वही, जज्बात वही,
बस जज्बातों की कद्र नहीं,
क्या औरों के तरह तुम्हारे भी,
मन में यादें फिसल गई?

ठहरे हुए थे बाट जोहकर राही,
कि ना मचले यादें, न फिसले यादें,
पर औरों की तरह उसकी भी,
ना जानें क्यों मंजिल निकल गई? ~~gauतम





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31 OCT 2021 AT 15:51

मधुर हरश्रृंगार रस सी कोमल,
बातें मेरी उसे खटक गई,
आनन फानन में ही शायद,
मधुकर की लय सुर भटक गई,

इसलिए कली अब टूूूट चुकी है,
एक गलत सुर के कारण,
एक गलत लय के कारण,
मधुकर की गान अब छूट चुकी है,

अगली कली शायद ही आए,
अगले मधुकर शायद आए,
हरिश्रृंगार रस सी कोमल,
शायद ही वो गान सुनाए,
"मधुकर की लय - सुर भटक चुकी है!!
~~Gauतम

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