Gautam Kumar   (kavigautamkushwaha)
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✍️.लेखक
Joined 29 November 2019


✍️.लेखक
Joined 29 November 2019
30 AUG AT 10:56

नेता जी की लड़ाई में, जनता गई है हार।
राहुल बोले चीखकर,ये चोरी की सरकार।।

कांग्रेस-भाजपा लड़ रहे, चला वचनों के तीर।
जनता के हाथों में है, इन दोनों का तकदीर।।

चुनाव आते ही उमड़ते हैं , वादों का तूफान।
पाँच वर्ष तक भूले दोनों,जनता की पहचान।।

स्वरचित© ✍️..गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर (बिहार)

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1 MAY AT 14:05

शीर्षक- मजदूर
कच्चे घरों में रहकर , ये किसी का महल बनाता है।
रूखी - सुखी खाकर ,किसी तरह दिन बिताता है।।
गुरु हथौड़ा हाथ में लेकर ,
ये तोड़ता है चट्टान को।
भिन्न - भिन्न रंगों से सजाता ,
ये मालिक के मकान को।।
तप्ती गर्मी जलता बदन,फिर भी ना करता है आराम।
पेट भरे सदा बच्चों का, इस उद्देश्य में करता काम।।
गले लगाएं इनको हम,
ना बनाये इनसे दूरी।
त्योहारों में भी ना मिलता,
इन्हें खाने को हलवा पूरी।।
काम की तलाश में, ये भटकते हैं कोसों दूर।
पसीनों से अपना तन भींगोते,मेहनतकश मजदूर।।

✍️गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर (बिहार)

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14 FEB AT 12:43

चाहूँगा मैं तब तक तुमको ,
जब तक तन में स्वांसा है।
नजरो से तुम ओझल ना होना ,
मेरे दिल की ये अभिलाषा है।।
ढूँढ रहा हूँ पुष्प वो ,
सुगन्धों ने जिसे तराशा है।
अब तो मेरे बाहों में आ जा,
तुमसे मिलने कि जिज्ञासा है।।

✍️..गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर ( बिहार )

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14 FEB AT 12:38

नैन से नैन मिलाकर उसने ,
दिल लगाई राहों में।
चंद दिनों तक दूर रही ,
फिर आ गई मेरी बाहों में।।
कुछ दिनों में ही बन गये ,
हम एक दूजे के अपने।
संग रहकर हमने सजाये ,
तरह - तरह के सपने।।
गलत फैमियों में उसने ,
बदल ली अपना रास्ता।
कल तक जो अपने थे
अब नही है उसे ,
मुझसे कोई वास्ता।।
रिश्तों मैं ऐसा होता है अक्सर,
अपने ही अपनो को देते है ठोकर।।

स्वरचित© ✍️..गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर (बिहार)

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22 SEP 2024 AT 7:15

बेटियों के राहों में, जो बिछा रहे हैं शूल।
कर गुनाह कहते दरिंदे,हो गई हमसे भूल।।
अब हवस के दरिंदों को,
ऐसा तगड़ा झटका दो।
कृपाणो से काट गले को,
चौराहे पर लटका दो।।
रूह भी ना सिहरी थी इनकी,ऐसा घृणित काम से।
तनिक डर लगता ना इनको,प्रशासन के नाम से।।
हवस के ऐसे पुजारी का,
तिनका-तिनका नाश करो।
ऐ संसद तुम चुप बैठे हो,
कठोर कानून पास करो।।
कुछ भेड़िए ने धूमिल किया,एक बेटी की अस्मिता को।
चंद महीने बीतते ही, हम सब भूल गए मोमिता को।।
✍️गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर (बिहार)

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14 SEP 2024 AT 15:46

सीधी सरल मधुर है हिंदी,यह भारत की है पहचान।
कार्यालयी भाषा है हिंदी, है इस पर मुझे अभिमान।।
संस्कृत से बनी ये भाषा,
मेरी संस्कृति की शान है।
मधुरता है इस भाषा में,
यही इसकी पहचान है।।
चहूँ ओर अब फैला दो यारों, बस एक ही संदेश।
हिंदी भाखन से ना हिचको,गर जाओ तुम विदेश।।
हिंदी के हर एक शब्द में,
वतन की आन - बान है।
इसे संजोऐ रखेंगे हम
ये मेरी संस्कृति की जान है।।
हिंदी आत्मा आचरण,हिंदी भावनाओं की साज है।
हिंदी मेरे रज - रज में बसी,वीरता की आवाज है।।
✍️.. गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर (बिहार)

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19 AUG 2024 AT 6:23

श्रावण मास के पूर्णिमा दिन, आता है रक्षाबंधन।
थाल सजाकर बहन लगती,प्यारे भाई को चंदन।।

गली-गली में सजी हुई है,राखी की नई दुकान।
बहन के हाँथों बनी हुई ,भाई खाये पकवान।।

दिल के गहरे दर्द भी ,वो कर लेते हैं सहन।
जिस भाई की होती है,एक प्यारी सी बहन।।

इंतिजार में बहनों की,कहीं हो ना जाये भोर।
कौन बाँधेगी मेरी कलाई, पर रक्षा की डोर।।

सुनी पड़ी कलाई जिनके,भाग्य भी उनके फूटे।
प्यार मिले ना रिश्तों में तो , रिश्ते अक्सर टूटे।।

जिसके पास जो चीज है होती कदर नही करते हैं।
जिनके ना होती है बहना, सावन में वो रोते हैं।।

कोई बना लो भाई हमको,दे दो बहना का प्यार।
खुशियों से हम भी मनाएँ , रक्षा का त्योहार।।

बहन चमकाती घर को ऐसे,जैसे चमके पेरिस लंदन।
थाल सजाकर बहन लगती ,प्यारे भाई को चंदन।
श्रावण मास के पूर्णिमा दिन, आता हैं रक्षाबंधन।।

स्वरचित© ✍️..गौतम कुमार कुशवाहा
मौलिक रचना मुंगेर(बिहार)

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6 APR 2024 AT 8:23

काँटों पर चलकर तुमने,सपनो का महल सजाया है।
कर्तव्य पथों पर आगे बढ़कर,सबको गले लगाया है।।
बैर-द्वेष की भावना,
ना हो तेरे अंदर।
तेरे हौसलों के आगे
बौना लगे समंदर ॥
है उम्मीद की जब तक किरणे,तुमसे रहेगा एक ही आस।
जग को रौशन करने का,तुम नित करते रहना प्रयास॥
बच्चों को शिक्षित करने को,
तूने नीज सुखों का त्याग किया।
कलम को हथियार बनाकर,
तूने अशिक्षा पर प्रहार किया॥
कर्म करो ऐसा की देख तुम्हें, आचंभित हो जाए जमाना।
दिल की अनंत गहराइयों से, तुम्हें जन्मदिन की शुभकामना॥

✍️.कवि गौतम कुशवाहा
मुंगेर(बिहार)

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14 FEB 2024 AT 21:39



दुनिया के सब साधु संत यही संदेश सुनाते हैं।
सफलता कदम चूमती है उनकी,
जो माँ के चरणों में शीश झुकाते हैं।।

✍️. गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर(बिहार)

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12 FEB 2024 AT 17:05

स्वरचित

घूम कर देख लिया हमने सरीफो का शहर।
दे रहें हैं यहाँ अपने ही अपनो को जहर।।

कौन अपना है कौन पराया है ये बतलाता है वक्त।
इस जहां में अपने ही अपनों का बहाता है रक्त।।

✍️. गौतम कुमार कुशवाहा
मुंगेर (बिहार)

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