Gautam ❣️❣️❣️❣️   (Gautam Singh)
36 Followers · 14 Following

Joined 16 February 2020


Joined 16 February 2020

सुनहरी धूप खिलती थी,
ठंडी हवाएं चलती थी,
कोयल मीठा गाती थी
और मैं खुश हो जाता था।

धूप खिलती है,
हवाएं चलती है,
कोयल गाती है
फिर तुम्हारा मैसेज आता है
और मैं खुश हो जाता हूं।

-



यूं तो मुझे कभी बताना नहीं आया और जताना तो बिल्कुल भी नहीं इसलिए इसे गुमनाम चिट्ठियों में शामिल किए देता हूं....
सुनो, तुमसे हर मुलाकात के बाद एक मुलाकात उधार रह जाती है। और रहे भी क्यों ना,‌ बड़ी मुश्किल से आंखों के काजल का जवाब ढूंढ ही पाया था कि उड़ती जुल्फें सिलेबस के बाहर से आ गई। अगर मेरी चेतना में समाज के सवालिया हमलों का अंदेशा ना होता तो निश्चित ही तुम्हारे बेहद करीब आकर उन जुल्फों को संभलता और बड़े इत्मीनान से इस मुकदमे की आखिरी दलील पेश करता कि तुम जैसी हो, बहुत अच्छी हो और नहीं भी हो तो मुझे लगती हो। खैर अब मैं तुम्हारे शहर से बेहद दूर आ चुका हूं तो तुम्हारे लिए मौसम का ख्याल रखने वाला वहां कोई नहीं होगा..... इसलिए तुम खुद का ख्याल रखना।

-



प्लेटफॉर्म पे इंतज़ार करते पंद्रह मिनट भी नहीं हो पाया था कि मुझे पता चल गया कि "गरम" है। हालांकि ठीक ठीक मुझे पता था नहीं कि गरम है क्या। परंतु सर पे टोकरी लिए एक अधेड़ उम्र का आदमी जो अपने मुंह से छलकने को आतुर गुटका-रस को संभालते हुए पूरी तन्मयता से आवाज दे रहा था .... गरम है! गरम है! गरम है! मात्र अगले दस मिनट में मुझे क्या तीनों लोकों के समस्त नर-नारी, देवी-देवता, असुर, किन्नर, गन्धर्व आदि को भी विश्वास हो गया था कि सामान चाहे जो हो पर गरम है। उतना ही गरम जितना देश के अन्य ज्वलंत मुद्दे जैसे किसने कोई भद्दा लतीफ कसा, उर्फी जावेद ने क्या पहना,  धर्म का कितना जय जयकार हुआ इत्यादि इत्यादि.....

-


25 DEC 2024 AT 21:28

तेजी से बदलते तारीखों ने इत्तिला कर दिया है कि अब यह साल खत्म हुआ चाहता है। गुजरते साल में अफसोस ये कि तुमसे फुर्सत की मुलाकात ना हो सकी और सुकून ये की दो पल का दीदार हुआ। मेरे उदास लहजे को भांप कर तुम्हारा यह पूछना, "सब ठीक है ना", इस साल के खूबसूरत पलों की चिट्ठी में सबसे ऊपर है। जब हताश होकर आंसुओं ने आंखों से रिहाई चाही तो कितना प्यारा था तुम्हारा यह कहना, "सब ठीक हो जाएगा"। और हां जब मैं खुश था तो लगा मानो पीले सूट में तुम थोड़ी और करीब आ गई हो। शायद किसी ने तुमसे कहा ना हो तो मैं कहे देता हूं...... पीला रंग जचता है तुम पे 💛❣️

-


20 NOV 2024 AT 22:57

यूं तो मुझे मेरा फोन बहुत प्यारा है और प्यारा होने की एक खास वजह यह भी है कि इसकी गैलरी की तंग गलियों के आखिरी छोर पर एक कमरा है जो पूर्णतः तुम्हें समर्पित है। इसकी दीवारें तुम्हारे रंग-बिरंगे दुपट्टों से मेल खाते हैं और बड़ी-बड़ी आंखें तुम्हारी मानो इसकी खिड़कियां। अक्सर मैं इन खिड़कियों में झांकता हूं और सोचता हूं कि निःसंदेह तुम जैसी ही कोई रमणीक कामिनी होगी जो कला के उत्कृष्ट कृति की प्रेरणा स्रोत बनीं होगी। शायद विंची की मोनालिसा की या फिर शेक्सपियर के हैमलेट की। खैर इसकी बारीकियों की उलझन में नहीं हूं मैं क्योंकि मैं तो मुतासिर हूं तहज़ीब हाफी के उस शेर से कि....
नहीं आता किसी पर दिल हमारा
वही कश्ती वही साहिल हमारा
तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम
तेरी गलियाँ हैं मुस्तक़बिल हमारा

-



सफर ✍️......
ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के दिलों से गुजरने वाली ये ट्रेनें समझती तो होंगी पराए दिलों का दर्द? इन ट्रेनों ने भी तो सहा है साथ छूटते स्टेशनों की तकलीफ़, रंग बदलते सिग्नलों का गम, विमुख होते पटरियों का दर्द। चुपचाप समेट लेते है ये बदहवास यात्रियों को अपने अंदर और सुनते है पूरे सफर सहनशीलता के साथ उन यात्रियों की संघर्षों की कहानियां। इन सब के बाबजूद कौन रखता है इनको गतिमान? शायद कही पहुंच जाने की उमंग, किसी को मंजिल तक पहुंचाने का वादा या शायद ये उम्मीद कि एक बार फिर नही छूटेगी किसी 'सिमरन' की ट्रेन, कोई 'राज' फिर से थाम लेगा उसका हाथ और ट्रेन के तपती इंजन पर पड़ जायेंगे सुकून के कुछ छींटे।

-


14 SEP 2023 AT 16:03

हिंदी, तुम बिल्कुल मां जैसी हो। परिस्थियां चाहे जैसी रही हो, कभी ये डर नहीं लगा कि तुम्हारा साथ छूटेगा। नए प्रदेशों में नए नए भाषाओं के आवरण के बीच भी सदैव तुम्हारे स्थायित्व का आभास रहा। उन भाषाओं में स्वच्छंद अटखलियों के बीच ये विश्वास था कि उलझे तो संभाल लोगी तुम जैसे संभाल लेती थी मां हमें हमारे शुरुआती कदमों पर। वैसे तो तुम्हारी आंखों के सहारे प्रेम के अनेकों रूप से रुबरु हुए पर कभी प्रेम जाहिर करना ना सीख सके। इसलिए बस इतना कहेंगे कि तुम्हारी आंचल के छांव में बहुत अच्छी नींद आती है।

-


28 AUG 2023 AT 21:32

खुद ही चकित है वो
अपनी शख़्सियत के सब्र पे,
वो कलाकार मिट्टी डालता है
अब रोज अपनी कब्र पे।

-


13 AUG 2023 AT 10:10

शनिवार की रात थी
हमें भी फुर्सत मिल गई
फिर जा बैठे छत पर हम
अकेले ही महफ़िल सज गई
सितारों से कुछ गुफ्तगू हुई
इधर उधर की बात चली
फिर एक ऐसी बात हुई
कि सितारों से सीधे ठन गई
सब एक स्वर में लगे बोलने
चांद है सबसे सुंदर प्यारे
हम नरमी से बोल गए बस
देखे नही तुमने मेहबूब हमारे।

सब तारे तब भड़क गए थे
कहने लगे निदान करा लो
जो भी हो सबूत दिखा दो।

तुमसे यही निवेदन प्रियसी
अब तुम ही मेरी लाज बचा लो
खुली जुल्फें और सूट था पहना
वो वाली तस्वीर भिजा दो।

-



हां ये लड़का बिगड़ रहा है।
उस लड़की के प्यार में देखो
धीरे धीरे निखर रहा है।
हां ये लड़का बिगड़ रहा है।

देर रात तक जाग जाग कर
स्वप्न स्नेहिल गूंद रहा है।
कह देगा सब हाल प्रिय से,
बस एक अवसर ढूंढ रहा है।
नफा-मुनाफा से क्या इसको,
ये हौले हौले पिघल रहा है।
अफसर बनने का भी सपना
तिनका तिनका बिखर रहा है।
हां ये लड़का बिगड़ रहा है।

-


Fetching Gautam ❣️❣️❣️❣️ Quotes