Aazad hai ham... kya sach me azaad hai ham
Varsho pahle dilayi veero ne jo aazadi
Hamne samjh goro se hi hamne leni thi aazadi
Par un 21 saal ke jawaano ne kya isi liye di thi apni kurbani
Bahar ke Dushman to bhaag gaye
Par bheetar baithe durguno se kya mil gayi hame azaadi
Irshya, dwesh, jati ,Ling or amir Garib ke bhedo se kya mil gayi hame aazadi
Har yug me har sadi me jab paida hua koi mahapurush
Itihaas utha ke dekh lo mudde unke yahi hai
Kal nahi ham aaj bhi unhi awguno ke adheen hai
Har saal manate ham aazadi ,par kya sach me hame mili hai apne kuvivharo se aazadi
Chote bade ka na ab maan raha ,
Sahansheelta jaise shabdo ka bus shabkosh se ab nata hai
Kyunki hamto adheen hai ,Andhkar me vilin hai
Aane wale kal ko kya saware jab ham khud apne kuwicharo ke adheen hai
Utho Jago aur shankhnaad karo
azaad karo ,aazaad karo...in Sankramit vicharo se sawaym ko tum aazaad karo
Kaho garv se sach me aayi aazadi ....ham hue hai aazad ab mili hai aazadi...Sach me mili hai aazadi-
देखा अनदेखा कर,आँखों में छोड़ वही इन्तजार
होठों पे नाम आया भी ना था ,पुछके वक्त सामने से गुज़र
गया आज वो यूँ अनजानो की तरह ,जैसे पपीहे ने बारिश की टोह में अपनी प्यास का तसव्वुर बनाया ही था पर ना बरसा वो बादल ,जो देख पपीहे को बरसने गरजाया तो था ......-
ना रोके कोई ना टोके मुझे
ना पूछे कोई ना देखे मुझे
कभी बातों की गहराइयों से आँके
तो कभी मेरे विचारों से जाने मुझे
मेरी लिखावट हो कुछ इस तरह
की चाहने वाले भी बस मेरी कविता से पहचाने मुझे-
किसी का नाम आते ही ओटो पे
मुस्कान आ जाती है
याद करे ना करे वो मन में अजीब
हलचल हो जाती है
मन तो करता है बहुत
लिख दूँ स्याही से अपनी में नाम उसका
पर ये कम्बख़्त स्याही भी उसके नाम से नील हो जाती है-
बचा के रखना हाँ अपनी मासूमियत ,बचा के रखना
साँवले सलोने चेहरे की वो मुस्कुराहट बचा के रखना
मिलेंगे चेहरे सलवटों से भरे छुपे होंगे उनमें राज़ भी गहरे
पर तुम ना विचलना तुम ना बिखरना
बचा के रखना अपना विवेक
रहना हमेशा अचल अडिग अभिक बचा के रखना
अपना व्यक्तित्व अद्भुत अनोखा अभेद.......-
यादों में ना रखा , ना कभी ख़तों में ज़िक्र किया
ज़िंदगी से अपनी तूने हमें यूँ दरकिनार किया
तेरी एक झलक की हसरत रहती हमें हरदफा
क़सूर किसका था यहीं सोचते रह गए हम तो
तूने ओ नील अपनी महफ़िल में जो हमें यूँ नज़रंदाज़ किया!
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एक झूठ और सौ झमेले
सुनते आ रहा हुँ बचपन से,
बड़े सभी समझाते तो थे
बेटा पालन करो इसका तुम सच्चे मन से,
पर देखा तो दंग रह गया मैं
कोई रह नहि गया है दुनिया में
बोलते झूठ है क्यूँकि नाता पक्का है सबका
इस अनोखी बुरी आदत से
होश संभाला और खँगाला तो समझ आया
ग़लती उनकी नहीं सीधा सम्बंध है परिस्थितियों से
किसी को ज़रूरत तो किसी की मजबूरी है
झूठ नहीं वो माँग समय की ऐसा प्रदर्शित है
उनके कथनो से....
अरे मैं कहता हुँ त्याग दो ऐसी मजबूरी को
जीना क्यूँ ऐसे नकलीपन से
शुरुआत ही जिसकी वास्तविक ना हो
धिक्कार है ऐसे ज़िंदगी जीने से...-
जब कुछ ना मिला तुझे ,तो इल्ज़ामे ब्याँ करता है
अरे दिल है वो दिल अमीर ग़रीब से नहीं बदलता है
हिम्मत कर और बोल दे ,ऐसा ना हो उसे ख़बर ही ना हो
और यहाँ दिल तेरा बिना उसे जाने ही धड़कना ना छोड़ दे.....-
रात को नींद आती नहीं ,शाम को तेरी याद जाती नहीं
मशगूल रहता है दिन पूरा, पर सच है तक़रीर तेरी भी ,दीदार की झुठलायी जाती नहीं....-
ख़्याल को लहर बना रेत का तु साथ दे ,
किनारे पे लाकर रेत को ठहराव दे......
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