"हलक" तक आये आज अल्फाज और फिर जाहिर ना हो पाए,
मुड़े तुम भी, और हम भी उसी राह पर, जो हमे कभी मिला ना पाये !
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मौत को देखा, मौत के भी करीब से,
ऐसा नसीब मिलता है, नसीब से।
माहौल का क्या था, बनाए रखा,
नहीं मिल पाए तो खुद, खुद के रक़ीब से।
हम ने मुसलसल मुलाकातों की कोशिशें की,
वो जाते रहे दर पर मेरे रक़ीब के,
हमारे सितारे गर्दिश में आते आते रह गए,
हम मान बैठे रहे कोने में गरीब से।।
यूँ तो इन आंखों ने देख ली है दुनिया काफी,
पर इन्हें पीने हैं जाम उनकी आंखों से प्रीत के,
गो कि आंखें एक दिन रह ही जाएंगी पथरा के,
तब तक रहेंगे हम इनमें आंसू सींचते।-
पता है,
दिल तब नहीं टूटता जब छोड़ कर जाती है कोई प्रेमिका अपने प्रेमी को,
या किसी की चाहत, अपने रक़ीब की डोली में बैठ विदा हो जाती है।
दिल टूटने की आवाज पूरी कायनात में गूंजती सुनाई देती है तब, जब आपने उठाये हों सड़क पर गिरे कई नौजवान, असहाय, बूढे,
और आपके गिरने पर, बस कुत्ते चाटने आयें आपका लहू।-
तुम्हारी फितरत के बारे में कर लेंगे बात औरों से,
खामियों का ज़िक्र खुद से भी ना करेंगे कभी।-
मुझे लिखने हैं बहुत सारे पत्र,
हर रिश्ते के लिए,
माँ, बाप, बहिन, भाई, प्रेमिका, दोस्त;
सबको, मतलब सबको;
और कुछ पत्र उनको भी,
जिनसे मैंने कभी मन से बात तक ना की,
और बहुत से उनको जो ना प्रेम हुए ना दोस्त हुए।
कुछ या बहुत से पत्र लिखने हैं,
बिना पते और बिना अभिवादन के,
बहुत सारी लड़कियों और बहुत से दोस्तों को,
जिनसे बहुत कुछ कहा नहीं जा पाया,
क्योंकि उनमें होंगे बस अहसास और जज्बात,
और वक्त के साथ ढूंढ ही लेंगे वो लोग,
उन पत्रों को,
जिनके लिए लिखे गए हैं वो पत्र।-
जिंदगी की गाड़ी भागती रही,
खुशियां मनाई, ढोते रहे गम।
बहुत से लम्हे हमारे ना हुए,
बहुत से लम्हों के ना हुए हम।-
"बहुत है"
सुबह तक जब आंखें जागीं,
चला पता रात स्याह बहुत है।
चाहते हुए जब नींद ना आई,
लगा पलकों में विवाद बहुत है।
अक़्सर रातें जगकर काटीं,
कहीं रुका इजहार बहुत है।
गईं जो रातें! वो ना लौटेंगी,
अब तो ये मलाल बहुत है।-
जो नहीं हैं पूर्वाग्रह से युक्त,
उनकर भरपूर किया जायेगा उपयोग,
कलाएं हो जाएंगी लुप्त,
पंथों के पाटों में पिसकर,
देते रहेंगे दुहाई, अपेक्षित,
किनारे वाले विवेकी मनुष्य,
और क्षणिक उन्मादों से घिरे रहेंगे,
खुश हो लेंगे,
अरसे बाद मिले एक और किनारे वाले मिलकर।
बढ़ता रहेगा कारवाँ, अविवेकी,
सुसुप्त, तथाकथित जाग्रतों का,
और किनारे वाले रहेंगे हमेशा,
किनारे, किनारे और किनारे।
ग्वालियर ११/०३/२०१९
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है बहुत कुछ,
जो महसूस किया जाता है।
ये बात और है कि,
जो परिभाषित है;
वही समझा जाता है।-