कैसे कहे...
कुछ नही रहा
प्रतीक्षा है विरह है
वो मोगरे के फूल है
हां ये सब
तेरे प्रेम के समानर्थी ही तो है
जो आज भी इठलाती जुल्फो को
संजो कर पिरो देती है.-
Pen and paper is my best friend
यही लिखने की कला है जिसपे सिर्फ़ तुम... read more
प्रेम का अवशेष अगर अस्थियों तक रहे !
तो मूलत:
उस प्रेम के सामर्थ से शानदार जीवन जीया गया!!-
ना सादगी मे उलझना
ना खुबसुरती की उपमाऐ पिरोन...
............बस..........
तुम सागर बनकर आना.....
और समाहित कर लेना मेरे अंत: मन को.....-
देखो ना
इन आंखो मे...
मर्मता शून्यपरत
अहलाद करूणाबद्ध
बिन्दू प्रलब्ध....
दिप्तमान दृष्टि
एकांकी भावना
निमेषरहित
अथाह रतियुक्त
मात्र प्रेम......
गौरी!-
बेखबर चलते है....
बेखबर पथो पर....
बेखबर रति लिए...
बेखबर आमोद लिए...
बेखबर रैना मे....
खबर तो हो उस,
बेखबर प्रेमी का जिसके,
प्रमोदो मे होकर ओत-प्रोत,
चलते जा रहे बस चलते जा रहे,
बेखबर सा बस बेखबर सा....!!!!
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थम जाते सारे अल्फाज ....
नि: शब्द रह जाती रूह....
बस रह जाती मुझमे,
छायान्कित बेखबर रूहानी यादे....
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आज-कल कि परंपरा हो गई है
कपड़े उतारने की...
पर इस परंपरा में भी तू मुझे
दुपट्टे तौफे में देना...
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