ग़ज़ल
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सारा इल्ज़ाम मुझ प' डाल दिया,
तजरबा ये भी क्या कमाल दिया,
एक दिन और राएगाँ गुज़रा,
आज को फिर से कल प' टाल दिया,
मैंने भी सर्द रातें दे दी उसे,
उस ने जब ओढ़ने को शाल दिया,
ऐ ख़ुदा मैं हूँ वह चराग़, जिसे,
तुमने जलने का बस ख़याल दिया,
ग़म जो तुझसे नहीं हुए मंसूब,
क़ाफ़िले से उन्हें निकाल दिया,
मैं यूँ नादान था कि ज़ालिम पर,
संग के बदले दिल उछाल दिया,
मैंने आगे बढ़ाए लब अपने,
उसने बोसे प' मेरे गाल दिया।
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