रात का एक टुकड़ा फाड़ा लपेटे सपने बना ली बीड़ी और सुलगा ली चाँद से लम्बे लम्बे कश भरे फिर जिंदगी की आँखों में आँखें डाल कर कहा "चल ले चल, जहाँ ले चलना है।
नखरे दिखाता सूरज साँझ की नकल उतारता दिन दुश्मनी निभाता पानी औपचारिकता जीता समय धुँए में छिपकर रेंगते शब्द ठहरी सहमी जिंदगी मानो फिर से मायने खोजती हो सब कुछ अधूरा छोड़ देती है सर्दियाँ जैसे किसी ने कच्ची ही पलट दी हों रोटियाँ।
"Up, from the mountains, when you look at the world downwards, you may feel estranged. As if you never belonged to that world and have reached a better place closer to the God's abode. " ~DAWN AT DUSK