माँ की हाथों से बुने स्वेटर सालों पहले की इस ठंड मे भी मेरे साथ है l
और जो पिछले साल कह रहीं थी ठंड बहुत है अपना ख्याल रखना सुना है इस साल कि ठंड मे किसी और के साथ है ll-
वो मोहब्बत मे पंछी बनी हम बने ड़ाली
पत्ते पतझड बिखर सूख के जला दिए गए हम
वों बैठी दुसरे डाल पे पीने चली पानी-
जिस्म की भूखी थी वो हम प्यार समझ बैठे
वो तो निभा रहीं थी किरदार अपना
हम ही उसे धोखेबाज समझ बैठे-
दीया तो जला दिया पर रोशनी उसमें दिखती नहीं
मिठाइयाँ तो ले आया पर स्वाद उसमें आता नहीं
घर तो सजा दिया पर चमक उसमें दिखती नहीं
शहर की य़े दीपावली अपनी गांव जैसी लगती नहीं ll-
मिलो किसी दिन सुबह तुम्हें जन्नत से मिलाऊं इस शहर से दूर अपनी पहाड़ों की वादियों में तुम्हें बैठकर चाय पिलाऊं
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मैं तो फिर भी गले लगाने को तैयार हूं तुम्हें यह जानते हुए भी कि लोग मर रहे है हाथ मिलाने से
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हम आने के बात करते हैं वह जाने की बात करते हैं भ्रम तो तब टूटा हमारा जब हमें पता चला अभी भी वह अपने पहले प्यार पर ही मरते हैं
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जिंदगी में कुछ गलत हो जाए तो घबराना मत क्योंकि दूध फटने से वही लोग घबराते हैं जिन्हें उसका पनीर बनाना नहीं आता
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