अजीब लगती है ये शाम कभी कभी
ज़ेहन में आता है तेरा नाम कभी कभी
ज़िन्दगी जीने में अब ज़िंदादिली नहीं रही
लगता है लग गया है पूर्णविराम कभी कभी
यादों को तेरी दिल से मिटाने की कोशिश में
गुज़र जाती है रात तमाम कभी कभी
जब भी ख़ुद से मिलने का दिल करता है
थाम लेता हूँ मैं ज़ाम कभी कभी
अपने ग़म जब भी सताने लगते हैं मुझे
चला जाता हूँ मैं शमशान कभी कभी।-
कुछ शौक मुझे है लिखने का
कुछ मैं लिखने का आदि हूँ
खुशियाँ हैं कुछ मेरे अन्दर
कु... read more
वक़्त के हर बदलाव में ढलना चाहिए
मन में स्वप्न एक नया पलना चाहिए
ख़ुदा सभी को बक्शेगा ख़ूब तरक्की
दूसरों के सुख से नहीं जलना चाहिए
हर इंसान इंसानियत का फ़र्ज़ 'अता करें
लालच के लिए नहीं कभी छलना चाहिए
विपरीत दशा में भी तुम रोको नहीं कदम
चाहे धीरे-धीरे ही सही मग़र चलना चाहिए
खुशियाँ दुख दर्द मिलते रहेंगे हज़ार बार
दिल को ना मंज़र कोई खलना चाहिए।-
सिर्फ़ तारीख़ो में ही ये साल बदल जाएगा
ऐसा तो नहीं होगा कि हाल बदल जाएगा
वही शिकवे वही शिकायतें वही आपा-धापी
ऐसा तो नहीं होगा जो सवाल बदल जाएगा
ज़िन्दगी में चलती रहेंगी रोज ही खींचा-तानी
ऐसा तो नहीं होगा ये मकड़-जाल बदल जाएगा
रोज़-मर्रा की उलझनों में मुस्कान ख़ो जाएगी
ऐसा तो नहीं होगा ये माया-जाल बदल जाएगा
उतर चढ़ाव अनेकों आते रहेंगे यूँ ही बारंबार
ऐसा नहीं होगा कि ये वक़्त चाल बदल जाएगा
साल तो यूँ ही हर साल हर हाल बदलता रहेगा
क्या लोगों के ज़ेहन से भी ख़याल बदल जाएगा?-
वो गुज़रे दिन वो बीते सुहाने कल
तुम्हारे साथ ख़ूबसूरत थे हर पल
मन कहता है भूल जा अब उसे तू
दिल कहता है यादों में मिलने चल
कैसे सुलह करुँ ज़ेहन-ओ-दिल में
मैं निकालूं कैसे मुश्किल का हल
तन्हा गुज़रती हैं उदास रातें अब
और अँखियों से भी छलके जल
मोहब्बत और अहद-ओ-वफ़ा में तेरी
कथनी करनी में भी पड़ने लगें है बल।-
ग़ुम जातीं हैं कहाँ ख़ुशीयाँ समझ आता नहीं है
एक ये ग़म है पीछा छुड़ाने से भी जाता नहीं है।
क्यों सबको ज़िन्दगी में ख़ुशियाँ ही चाहिए होती हैं
ग़म भी जीवन का हिस्सा है कोई ख़ुद को समझाता नहीं है।
काश! खुशियाँ जमा करते हम खुशियाँ निकाल पाते
पर अफ़सोस, ज़िन्दगी की बैंक में ऐसा खाता नहीं है।
हर शख़्स अब अपने अन्दर तन्हा जी रहा है
रिश्तों की भीड़ में किसी को भी अपना पाता नहीं है।
ज़िम्मेदारी, ग़म, हालातों ने संज़ीदा कर दिया इस कदर
कि कुछ भी अच्छा दिल को अब कोई भाता नहीं है।
बे-ग़ैरत इतनी बढ़ गयी है आधुनिकता के संसार में
तकलीफ़ से पीछा किसी का कोई छुड़ाता नहीं है।-
मुरझाई यादें लिए दिल में हर इंसां जी रहा है
तन्हाई के घूंट अन्दर ही अन्दर कब से पी रहा है
वो अधूरी बातें जो बयां नहीं की जा सकी मुद्दतों से
जीना मुहाल करती हैं फ़िर भी लबों को सी रहा है।-
ख़ुदा बदलते रह गये इश्क़ में कितने लोग
हिज़्र-ए-ग़म में बह गये जाने कितने लोग
नाकामी, बेबसी, ज़िल्लतें, अपनों के ग़म
जाने क्या क्या सह गये जाने कितने लोग
जब सज़दे, दुआएं प्यार में हो ना सकी कबूल
बस हाथ मलकर रह गये जाने कितने लोग
कुछ ने दी नसीहतें, कुछ ने भले सुख़न कहे
जाने क्या क्या कह गये जाने कितने लोग
जिसने दरवेशी अपनायी उसने ख़ुदा पा लिया
यहाँ ख़ुद ही ख़ुद में ढह गये जाने कितने लोग।-
सबको अपनी अपनी मोहब्बत पर गुमान था
जिक्र माँ का हुआ और निगाहें झुक गयीं।-
दर्द छुपा लूँ हँसकर चाहे माँ सब कुछ पहचानती है
मुझसे बेहतर अब भी मुझको मेरी माँ जानती है।-
इतनी सी बात पर मैं क्यों मलाल करुँ
मुझे भूल गयी है तो क्यों मैं सवाल करुँ
उसे भी हक़ है अपनी ख़ुशियाँ चुनने का
क्यों उसके पीछे मैं दीवानों सा हाल करुँ
क्यों मैं तन्हा भटकूँ, रोऊँ उसके ख़ातिर
क्यों हिज़्र-ए-ग़म में जीना मैं मुहाल करुँ।
बेहतर है अकेला रहूँ, ढूँढू ख़ुद में खुशियाँ
क्यों ख़ुद से बग़ावत मैं ख़ुद में बवाल करूँ।-