दुशासन तो बालक है
उसका मन ललचाया होगा।
गलत तो यहाँ द्रौपदी है
उसी ने उकसाया होगा।
यहाँ अर्जुन हैं, हैं भीष्म भी
हैं भीम समान बलधारी।
प्रषासन बना है धृतराष्ट्र
कानून बनी गांधारी।
कटघरे में खड़ी द्रौपदी
शकुनि विपक्ष वकील बने।
वही पूछ रहे क्या हुआ था उस दिन
तब भरी सभा में थे मौन तने।
यह कौरवों की दुनिया है
यहाँ मांस नोच सब खाएंगे।
चीर बचाओ स्वयं द्रौपदी
कृष्ण यहाँ न आएँगे।-
चारों तरफ ये कैसा शोर, चीखने का, चिल्लाने का
ऊपर वाले ने बोला है, आधी रात जलाने का
पूछताछ, न रपट कोई, भेद न खुलने पाए ये
बेटी ही तो थी दलित की, क्यों इतना शोर मचाने का
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करीबी रिश्तों में भी फासलें हैं
रिश्तों का खेल अनोखा है
ज़मीं से आसमां का भी मेल है कोई
या बस इक आंखों का धोखा है-
तुमसा मिला कोई तो फिर बात होगी
वगर्ना तुम्हारी तस्वीर से ही मुलाकात होगी
तुम भी सो न पाओगे यूं दूर चैन से
हमारी याद से तुम्हें हिचकियां दिन रात होंगी
हंसोगे जब भी उसकी बांहों में बंद होकर
तुम्हारा हंसना ही तुम्हे मेरी खैरात होगी
आऊंगा तुम्हारी गली में मैं कहने अलविदा
मेरा जनाजा ही समझना मेरी बारात होगी-
तुम्हारी यादों में मरा हूं बस, पर वैसे जिंदा हूं
उड़ना मुमकिन नहीं अब मेरा, पर अब भी परिंदा हूं-
आज बादलों से मेरी बात हो गई
आंखें नम थी और बरसात हो गई
मेरे प्यार में कमी निकाल न सके वो
तो फिर बहाना मेरी जात हो गई-
मेरा बाप
मैं खा चूका हूं पेट भर, ये सुन जा वो सो गया
मेरा बाप उम्र से पहले बूढ़ा हो गया
आंखें सूखी रखी हमेशा, अंदर सागर जितना रो गया
मेरा बाप उम्र से पहले बूढ़ा हो गया
सब कुछ अब है पास मेरे, बस वो ही है जो खो गया
मेरा बाप उम्र से पहले बूढ़ा हो गया-
बिखर कर फैला हूं कितनी दूर तक मैं
सिमट जाऊं जो फैला दें वो बाहें अपनी-
मेरी याद में आज भी तेरी आंखें भर जाती हैं
मेरी रात भी यूं ही हिचकियों में गुजर जाती है
तुम ढूंढती हो मेरी बांहों का तकिया आज भी
मै तुम्हे ढूंढता हूं जहां तक नजर जाती है-