Gaurang Mohan   (gaurang mohan)
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Joined 24 April 2019


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Joined 24 April 2019
21 MAY 2023 AT 15:49

दुआ है, मेरी मोहब्ब्त का
’मोहन’ यही परिणाम निकले
साँस आख़िरी हो फिर भी
दिल से तेरा पैग़ाम निकले
जा रहे हैं बहुत दूर तुम से
अपने दिल में यही तमन्ना लेकर
जनाज़ा जब भी उठे मेरा
तेरे होठों से मेरा ही नाम निकले

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8 JAN 2023 AT 13:35

उनके ख़याल से हम हर सुबह की शुरुआत कर रहे थे
और वो भी हमारे शब्दों में अपने जज़्बात भर रहे थे
हमारी हर दुआ में मुस्तक़बिल था शुमार जिनका
वो बेमुरव्वत हमारी ज़िन्दगी की मात कर रहे थे

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30 DEC 2022 AT 20:56

अकसर अकेले में होती है गुफ़्तगू दिल की
मजलिसें तो मुक़र्रर हैं उनके रक्स के लिए

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8 DEC 2022 AT 20:21

हो गए कई दिन कुछ भी खाए हुए
रातें बीत गईं पलक झपकाए हुए
वो व्यस्त हैं और मस्त हैं हसीं महफ़िलों में अपनी
और हम बदहाल हैं अंधेरों के सताए हुए
अभी तो उनकी दुनिया में हैं बहारें कई बाक़ी
पतझड़ में सब छूटा, साथ मेरे मय और साक़ी
इस डर से कि कहीं मिल न जाएं उन से दीदे
हम घूमते हैं अपना चेहरा छुपाए हुए
जनाज़े को मेरे इस क़दर तुम उठाना
कि उनके रास्तों से मुझे ले ना जाना
उनकी गलियों के देख कर वो दिलकश नज़ारे
मुश्किल हो जाएगा फिर मेरा आगे जाना
वो जान न पाएं उन्हें कोई मोहब्बत करता था
न सुन लें कि कोई दीवाना भी उन पे मरता था
वो मासूम ये सदमा सह न पाएंगे इसलिए ही
हम जा रहे हैं सीने में ये राज़ दबाए हुए
यहॉं पे नहीं तो कहीं और होगा हासिल
उस पार तो शायद हम भी होंगे उनके क़ाबिल
प्यार को थामेगा कहाँ ये जन्मों का बंधन
इसी ख़ुशी में हम हैं मौत को भुलाए हुए

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22 NOV 2022 AT 20:14

मेरी मंशा कब थी कि मैं धनाढ्य बन कर ऐश करू‌ॅं
मेरी मंशा कब थी कि मैं पराए धन को कैश करू‌ॅं
दोष उसी का है जिसने थी गली स्वार्थ की दिखलाई
वही है पापी जिस ने मेरे जी को लालसा सिखलाई
आस मुझे तो यही थी कि हर घर में चूला जल जाए
छोटे बड़े का भेद न हो बस पेट सभी का पल जाए
कोई बालक तड़प भू़ख से माँ के सामने न रोए
और पेट भर के बालक का माँ भी भूखी न सोए
लेकिन अब लगता है जैसे भर लूॅं अपनी झोली मैं
औरों का हिस्सा खा लूॅं और उन्हें मार दूॅं गोली मैं
यही समय है 'मोहन' हम को अब थोड़ा रुकना होगा
प्रबल वेग से चीर तमस नए सूरज को उगना होगा

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17 NOV 2022 AT 22:18

भरी हो जब जेब अपनी मुक़म्मल इश्क़ तभी होता है
मजनू तन्हाई में कहीं, घुटनों में सिर रख कर रोता है
बनते हैं फ़साने अकसर, महलों में रहनेवालों के
बदहाल आशिक़ तो सदा 'मोहन' गुमनामी में खोता है

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27 OCT 2022 AT 0:40

यही सोच कर कि वो साथ देंगे, उन्हें सौंप बैठे बेकार सब कुछ
यही सोच कर कि हम सब सौंप देंगे, वो साथ थे छोड़-छाड़ सब कुछ
हम ने लुट कर भी पाया सबक़ और उन्होंने ये दोस्ती खोई
हम हार कर भी जीत गए, और हार गए वो यार सब कुछ

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13 OCT 2022 AT 20:23

आहिस्ता-2 पल-पल घट रही है ज़िंदगी
हाल न पूछो बस ग़रीब की कट रही है ज़िंदगी
किसी का मुखड़ा खिला कमल
तो किसी की आँखों में आँसू
इसी ख़ुशी और ग़म में ही तो सिमट रही है ज़िंदगी
जीवन पथ पर दुर्भाग्यवश मैं आगे ही चलता हूॅं
यही नियति मानस की, मैं इसी अग्नि में जलता हूॅं
इस ऊहा-पोह में यूॅं ही बस निपट रही है ज़िंदगी
कभी थमी जड़ सी, तो कभी सरपट रही है ज़िंदगी

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13 OCT 2022 AT 20:10

आहिस्ता-2 पल-पल घट रही है ज़िंदगी
हाल न पूछो बस ग़रीब की कट रही है ज़िंदगी
किसी का मुखड़ा खिला कमल
तो किसी की आँखों में आँसू
इसी ख़ुशी और ग़म में ही तो सिमट रही है ज़िंदगी
जीवन पथ पर दुर्भाग्यवश मैं आगे ही चलता हूॅं
यही नियति मानस की, मैं इसी अग्नि में जलता हूॅं
इस ऊहा-पोह में यूॅं ही बस निपट रही है ज़िंदगी
कभी थमी जड़ सी, तो कभी सरपट रही है ज़िंदगी

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11 OCT 2022 AT 17:31

बहुत ज़माने बाद हुआ आज मन 1 कप काॅफ़ी का
कुछ बारिश थी मेहरबान और कुछ उनकी हाँ थी

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