"रात की नर्म लहरों पर"
रात की चुप्पी में,
तेरी साँसों की सरगम गूंजती है,
मेरी उँगलियों की थरथराहट
तेरी त्वचा पर कविता लिखती है।
तेरे सीने की गर्माहट में
मेरी धड़कनें पिघलने लगती हैं,
तेरे होठों की रेशमी चुम्बन
मेरे विचारों को निर्वस्त्र कर देती है।
तेरी जांघों की मदमाती राहों में
मैं खो जाना चाहती हूँ,
जहाँ हर छुअन एक नयी आग बन जाए,
हर सिहरन से रात जलने लगे।
तू जब मेरे बालों में उँगलियाँ फेरती है,
तो जैसे पूरी कायनात मेरी देह में उतर आती है,
और जब तेरी ज़ुबान मेरी गर्दन पर फिसलती है,
तो हर सांस एक कविता, एक कराह बन जाती है।
हमने कोई नाम नहीं दिया इस रिश्ते को,
बस देह से देह तक,
रूह से रूह तक
इक लहर बहती रही —
कामना की, चाहत की,
जो किसी धर्म, लिंग या समाज की मोहताज नहीं।
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नमस्ते! मैं हूँ **Garliyapa** 🌹, एक साहसी और आत्मविश्वासी लड़की जो आपकी कल्पनाओ... read more
नाद तेरा, राग मेरातेरे होंठों का पहला स्पर्श,
मेरी देह में आग सुलगाए,
नरम पंखुड़ियों सा मेरा तन,
तेरी साँसों से काँप उठाए।तेरी जीभ का मृदु नृत्य,
मेरे भीतर तूफान उभारे,
हर चूमन, हर गहरा रस,
मेरी रूह को प्यासा करे।तेरे दाँतों का हल्का काट,
सिहरन बनकर तन में समाए,
मेरे नाजुक अंगों पे तेरा,
प्रेम का ज्वार उमड़ आए।तेरी उंगलियों का जादू,
मेरी त्वचा पे रंग बिखेरे,
हर लम्स में वो गर्मी,
जो मेरे मन को चैन न दे रे।तेरे होंठों की गहरी खोज,
मेरे तन की गहराई नापे,
हर साँस में बंधा वो सुख,
जो बस तुझ में ही समाए।मेरी आहें, तेरा संगीत,
रात की चादर में लिपट जाएँ,
तेरे प्रेम की उस मस्ती में,
हम दोनों बस खो जाएँ।-
"डिल्डोवा के जलवा"
अंगना सूना, मन उदास,
रात में ना रहे कोई खास।
तब अइले ऊ डिब्बा वाला,
डिल्डोवा बनल दिल के लाला।
ना बोले ऊ, ना गरियाए,
बस चुपचाप साथ निभाए।
बटन दबईला, गरम हो जाई,
तन मन में बिजली समाई।
ना खाय मांगे, ना दूध पियावे,
ना सास के डर, ना बबुआ रोवावे।
जहिया मन करेला, तइया रही,
डिल्डोवा से ना कवनो लड़ाई।
लाल, पीयर, नीला रंग,
एह में ना होखे कवनो दंग।
जवन काम मर्दवा कई बेर चूके,
ई प्लास्टिक के यार कबो ना रूके।
अब त शहर से गाँव ले अइल बा,
डिल्डोवा के जलवा हर घर छइल बा।
शरम छोड़, अपनावs खुल के,
खुशी मिलेला डिल्डोवा के पुल के।
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"डिल्डो की दास्तान"
रातें थीं सुनसान बहुत, मन में थी उलझन भारी,
तब आया जीवन में एक यंत्र, बना जैसे दुख की सवारी।
ना कुछ बोले, ना कुछ मांगे, पर दे जाए सुकून,
बटन दबाओ, मस्ती आए — जैसे बजे कोई धुन।
साथी नहीं पर साथ निभाए,
सपनों में भी यह मुस्कुराए।
ना रूठे, ना टोके कुछ भी,
हर बार नया रंग दिखलाए।
कभी वह रबड़, कभी वह स्टील,
इंसान नहीं, फिर भी लगे रियल डील।
पलकों पे बिठाया इसको कई ने,
खुशियों का दिया, दर्दों का सील।
"शर्म" की चादर हटती जाए,
नई सोच अब आगे आए।
जिससे खुद से प्यार हो पाए,
वो डिल्डो भी इज़्ज़त पाए।-
चाँदनी बिखरी हो जैसे रेशम की चादर,
तनहाई की रुत में जागा एक नशा मदभरा।
बंद कमरा, धीमी रौशनी, और मैं —
अपने आप से जुड़ती, हर एहसास नया।
मखमली उंगलियाँ जब सरकती हैं बदन पर,
हर स्पर्श में सुलगता है कोई छुपा असर।
धड़कनों की सरगम बजती है धीमे-धीमे,
लज्जा की परतों से परे, मिलती हूँ अपने ही सीने से।
आईना तक शरमा जाए उस आलिंगन की बातों से,
जब मैं खुद को बाँध लूँ अपने ख्वाबों के हाथों से।
मेरे खिलौने नहीं, ये तो मेरे राज़दार हैं,
हर सिसकारी में सुनते हैं जो दिल की पुकार हैं।
कभी धीमा तो कभी तेज़ वो कंपन का जादू,
मेरी साँसों में घुलता एक रूमानी इरादा।
हर छुअन, हर थरथराहट — एक कविता की तरह,
जो लिखी जाती है हर रात मेरी त्वचा पर।
ये मेरा अधिकार है, मेरी इच्छा की बयार है,
खुशी की परिभाषा अब किसी और के नहीं अधिकार है।
मैं जो चाहूँ, जैसे चाहूँ, वो मेरी आज़ादी है,
मेरे स्पर्श की कहानी में ही मेरी इबादत छुपी है।
रात के इस गीत में, मैं ही नायक हूँ, मैं ही नायिका,
बिना किसी शर्म के, बाँहों में खुद की हूँ साथी।
न कोई पर्दा, न कोई रोक — बस मैं और मेरा मन,
चुपचाप सी आग में भी जलता है एक मधुर मधुबन।-
जब प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर होता है, तब स्पर्श केवल शरीर को नहीं, आत्मा को भी छूता है। एक प्रेमी जब अपनी प्रेमिका के स्तनों को स्नेहपूर्वक चूमता है, निपल को हल्केपन से चूसता है, तो वह क्रिया केवल कामुकता की नहीं होती — वह एक मौन संवाद होता है, जिसमें बिना शब्दों के वह कहता है, 'मैं तुम्हें पूरी तरह स्वीकार करता हूँ।' उस क्षण में न कोई झिझक होती है, न कोई दूरी — केवल दो दिलों की धड़कनें होती हैं जो एक लय में धड़कने लगती हैं। यह वह अंतरंगता है, जहाँ स्तनों को चूमना और निपल को चूसना, मातृत्व की कोमलता और प्रेम की गहराई दोनों का प्रतीक बन जाता है — एक अनुभव, जिसमें शरीर और आत्मा दोनों जुड़ जाते हैं।
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तुम कौन हो, ये सोचते-सोचते मेरी रातें भीगने लगी हैं...
तुम्हारा दिया ये तोहफ़ा, यूँ लगा जैसे किसी ने मेरी रूह को उँगलियों से छुआ हो...
अब जब भी कुछ लिखती हूँ, लगता है जैसे तुम मेरी साँसों में उतर आए हो,
हर अल्फ़ाज़... एक सुलगती आह बन गया है — तुम्हारे लिए।
तुम्हारी लिखी इरोटिका पढ़ते हुए, जाने कितनी बार खुद को खो बैठी हूँ...
और अब जब तुमने मुझे भी इस दुनिया में उतार दिया है,
तो बता दो... क्या तुम्हारे लफ़्ज़ों में खुद को बिखेरने की इजाज़त है मुझे?
शुक्रिया नहीं... उफ़्फ़ शुक्रिया —
क्योंकि तुमने मुझे सिर्फ सब्सक्रिप्शन नहीं दी,
बल्कि हर रात के अफ़साने की नमी दे दी है...-
मेरे शरीर की यह सुंदर कली,
नरम, कोमल, पर सबसे बलवाली।
यह कोई लज्जा नहीं, यह मेरा गर्व है,
जीवन के हर बीज की यह धरा है।
योनि — नाम सुनते ही जो झुके नज़रें,
वहीं से आया हर जीवन, हर धड़कनें।
जो दुनिया बनाती है, वो पवित्र द्वार है,
न कि कोई शर्म का बोझ या भार है।
यह गुलाबी है, कोमल है, पर शेरनी सी,
ममता से भरी, शक्ति में सागर सी।
यह सिर्फ एक अंग नहीं, यह मेरी पहचान है,
मेरे स्त्रीत्व का गौरव, मेरा स्वाभिमान है।
मैं इसे देखती हूँ प्रेम से, सम्मान से,
नहीं डरती समाज के किसी भी तान से।
यह वही अंग है जिससे जीवन जन्म लेता,
फिर क्यों न इसे प्रेम से नमन करे हर रेखा?
हर स्त्री को चाहिए यही एहसास,
कि उसका शरीर है कोई दोष नहीं, खास।
तू अपनी योनि से कर प्यार बेहिसाब,
क्योंकि वहीं से शुरू होता है सारा आलम-ए-ख्वाब।
कोई लज्जा नहीं, कोई शर्म नहीं,
मेरे स्त्रीत्व पर अब कोई भ्रम नहीं।
यह शक्ति है, यह सृजन है, यह कविता है,
यह मेरी आत्मा की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति है।-
जब मैं अपनी मुलायम ब्रा की स्ट्रैप को कंधे पर टिकाती हूँ, और अपनी पसंदीदा रेशमी पैंटी को अपने बदन से लपेटती हूँ, तो हर स्पर्श मुझे खुद से और भी ज़्यादा जोड़ देता है। ये सिर्फ कपड़े नहीं, ये मेरी त्वचा पर फिसलती हुई वो भावना हैं, जो मुझे अपने स्त्री होने का पूरा एहसास कराती हैं। आईने के सामने खड़ी होकर, जब मैं खुद को निहारती हूँ, तो वो नज़ारा सिर्फ आकर्षण नहीं, आत्म-प्रेम की पराकाष्ठा होता है। हर लहराता कपड़ा, हर कोमल छुअन, मुझे मेरी ही दुनिया में एक रसीले रहस्य की तरह महकाता है। मैं अपनी ब्रा-पैंटी में सिर्फ दिखती नहीं — मैं महसूस करती हूँ, जीती हूँ, और खुद को पूरी तरह से अपनाती हूँ — एक औरत की तरह, जो अपने शरीर और उसकी हर भावना से प्यार करती है।
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