कभी अंधेरों से भी बात करनी पड़ती है
सदा रौशनी राहें नहीं दिखाती!!-
मेरे अल्फ़ाज तो मेरी तलाश में निकलते हैं🙏
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सहर तो शाम के ख्याल में रही
और....
शाम किसी ख़्वाब की तलाश में रही!-
बहुत मुश्किल है किसी एहसास को शब्द देना
रिवायत चुप रहने की हो जहाँ, वहाँ कुछ कह देना!-
पहली कविता भी हमने सपनों पर लिखी थी और आज भी कविताओं में उसी का असर है
बस फर्क इतना है कि......
कल ख्वाबों के मुकम्मल होने की दुआ थी तो आज बिखरन को समेटने की!-
ख़ुद ही लिखती हूँ....
ख़ुद ही पढ़ती हूँ.....
सपनों के ताने-बाने
तन्हा ही बुनती रहती हूँ....
और भरोसा एक वहम था
प्रेम को अपमानित पाया है
उम्मीदों के सागर को....
इन आँखों से बहता पाया है!!
उसी राह से गुजर रहा है
मन जाने क्यूँ ठहर रहा है?
धूप सफ़र में बहुत है फिर भी
शूलों को ख़ुद चुन रहा है!!
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तुम रहती हो तटस्थ जब मेरा मन भी डिगने लगता है
तुम मुझसे भी ज्यादा अच्छी हो अक्सर लगने लगता है 🤍-
दर्द इतना मिला कि हंसना सीख गए
चोट इतनी मिली कि चलना सीख गए
सफ़र हमारा कुछ यूँ ही रहा
दबाया गया इतना कि लब कहना सीख गए।।-
आँसुओं के सिवा कोई कुछ न दे पाया
मुझे अपने मिले अपनापन न मिल पाया।
मेरे नजरिये से सब परेशान बहुत हैं
अपने तख़य्युल को कोई जरा न बदल पाया।
शिकायतें करना हमने छोड़ रखा है
और खामोशी की गूंज कोई सुन न पाया।
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चमकती आग की लपटों में कुछ धुआँ धुआँ सा लगता है
रोशनी कितनी भी हो कुछ बुझा बुझा सा लगता है!!-