उसका ना सोचे जो होने वाला है
जो आज है वही भविष्य ...
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ये तन्हाई है जो हर बार दर्द पर मरहम लगातीं है
मेरे आंसुओं को अपने अहसास में बहने देतीं हैं
नापतोल कर बातें ना सुनती और ना कहतीं है
ये तन्हाई है जो बिन मुखोटे मेरा साथ निभाती है
चीखती मेरी सिसकियों को आगोश में लेतीं है
सवाल भी करतीं हैं और जवाब भी दे जातीं है
ये तन्हाई है जो कमबख्त अपनी सी लगतीं है
रास्ता दिखता नहीं तो चिरागा बन जातीं है
टटोलकर मेरी आत्मा को परिंदा बनातीं है
ये तन्हाई है जो अंधियारी रात में जुगनू बन जातीं है
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सागर का प्रेम है किनारे से
जो अनन्त बार लहरों से स्पर्श होता है
टकराकर लौट जाता है
अनकही दास्ताँ सुनाने के लिए
ये प्रेम है सुखे दरख्तों में
जिंदगी में जिनके रंग नहीं है
अटल खड़े है बिना श्वास के
बसंतऋतू की आस लगाए
प्रेम है लहराती फसलों में
मिट्टी के हर कण कण में
किसान की महनत में
डालियों पर बने घोसलों में
प्रेम अनंत है अथाह है
ब्रमांड के अंतिम छोर तक
सिर्फ प्रेम... प्रेम... और प्रेम है...
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झूठों की इस दुनियाँ में
फिर एक मुसाफ़िर खो गया
मंज़िल को ना पाकर वो
पगडंडियों में बस गया
लाखों की इस भीड़ में
सिसकियों में सीमट वो रह गया
झूठों की इस दुनियाँ में
फिर एक मुसाफ़िर खो गया
झूठों ने क्या झूठ लिखा
मृत सांसो को भी मोम लिखा
लाशों की बंजर बस्ती में
इंसान को भी वृक्ष लिखा
शमशान में सीमटी चिंगारी को
आंसुओं की भस्म लिखा
पतझड़ में सूखे पत्तों को
बारिश की पहली बूंद लिखा
झूठों ने क्या झूठ लिखा
मृत सांसो को भी मोम लिखा
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सन्नाटे राख में पसरे है
चंद चिंगारियाँ करवटें बदले है
बदले मिज़ाज और क्षणिक आवाज
क्रोधित मेघ करें रूदन जाप
छलकी फुहार भरी गगरी से आज
निंद्रा प्रहरी खुद निंद्रा में चांद
तारों की जोत में जलती ये राख
सिसकियां ठहरी हवाओं के साथ
अधरों ने पहनें लाल लिबाज
एक लाठी की चोट और भस्म ललाट
जीवन का सत्य शमशान घाट
गंगा का घाट और जीवन समाप्त
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मुझे वक्त नहीं
मैं वक्त से बातें जो करती हूँ
फिलहाल
रह लिहाज मैं संभालके रखती हूँ
खामोश रहकर
हर चीख़ को बुलंद करती हूँ
मुझे वक्त नहीं
मैं वक्त से बातें जो करती हूँ
उत्तर नहीं
तो सवालों से मतभेद करती हूँ
पूछकर दीवार से
मकान ढ़ेर करती हूँ
मुझे वक्त नहीं
मैं वक्त से बातें जो करती हूँ
कांटों को देखकर
हाथों से गुलाब टटोलती हूँ
भुलकर हर याद को
मैं याद रखती हूँ
मुझे वक्त नहीं
मैं वक्त से बातें जो करती हूँ
-garima shekhawat
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रात में दीपक जलाये ये कौन बैठा है?
चंद्र बिंब आंसू में भिगोये
ये कौन बैठा है?
आंखों के झरोखे झांकते
मन बैचेन बैठा है
रात में दीपक जलाये ये कौन बैठा है?
गश्त लगाये दीपक में कहीं
ये कौन बैठा है?
बाती की देह भी झुलस गयी
ये मोन बैठा है?
रात में दीपक जलाये ये कौन बैठा है?
गुफ्तगू हवाओं से करने
ये कौन बैठा है?
दीपक की लौ भी कांप उठीं
ये शोर कैसा है?
रात में दीपक जलाये ये कौन बैठा है?
दर्द में डूबा हुआये
ये कौन बैठा है?
शांत हुयी सांसें भी है
ये शौक कैसा है?
रात में दीपक जलाये ये कौन बैठा है?
-Garima shekhawat
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लो उन बेजान
पत्थरों के लिए भी
एक पत्र छोड़ जातें हैं
शब्दों के आलिंगन में
सुगंधित एक
कली छोड़ जातें हैं
और कर देते हैं
प्रेम वर्षा उनपर
स्याही में घुली
हर आंसू की बुंद
का ऋण छोड़ जातें हैं
कागज में दिल के
टुकड़ों की आखिरी याद
छोड़ जातें हैं
और कर देते हैं
प्रेम हस्ताक्षर उनपर
-Garima shekhawat
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क्या है ये जिंदगी
चंद खुशियों
चंद आंसुओं का
हिसाब है ये जिंदगी
श्याही के धब्बों
कुछ खाली पन्नों की
किताब है ये जिंदगी
क्या है ये जिंदगी
जाने-अनजाने बने
रिश्तों का
संसार है ये जिंदगी
धरती से
आसमां के मिलन का
ख्वाब है ये जिंदगी
क्या है ये जिंदगी
जन्म से
मरण तक का
चलचित्र है ये जिंदगी
परमात्मा की
अदालत का
न्याय है ये जिंदगी
क्या है ये जिंदगी
-Garima shekhawat
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