झूठों की इस दुनियाँ में
फिर एक मुसाफ़िर खो गया
मंज़िल को ना पाकर वो
पगडंडियों में बस गया
लाखों की इस भीड़ में
सिसकियों में सीमट वो रह गया
झूठों की इस दुनियाँ में
फिर एक मुसाफ़िर खो गया
झूठों ने क्या झूठ लिखा
मृत सांसो को भी मोम लिखा
लाशों की बंजर बस्ती में
इंसान को भी वृक्ष लिखा
शमशान में सीमटी चिंगारी को
आंसुओं की भस्म लिखा
पतझड़ में सूखे पत्तों को
बारिश की पहली बूंद लिखा
झूठों ने क्या झूठ लिखा
मृत सांसो को भी मोम लिखा
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