दिल के भाव कभी कभी आँखों से बह जाते है …
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मैं किताब की तरह मिलूं , और उस खामोशी में हो तुम,
मैं और अनकहे शब्द …-
कौन है यह नारी ?
नारी -
गहराई सागर सी, उसकी हर बात में
पवित्रता हृदय में, करुणा भी साथ में ।
नींव की दृढ़ता, घर की दीवार वो,
मुश्किलों को हँसकर, करती है पार वो।
रूढ़ियों के पर्दे, तोड़ती है निर्भीक,
अज्ञात रास्तों पर, खुद से ही सीख।
रचे अनूठे किस्से, जग से परे सदा,
मौन में भी उसके कविता, जो हर मन को छुए सदा।
चुप रहकर भी, बहुत कुछ कहती वो,
आँसू में भी, हिम्मत संजोती वो।
सबको सिखाती, जीवन का पाठ वो,
बदलेगी दुनिया, अपने ही ठाठ वो।
नदियों के रंगों सी, बहती है वो,
मासूम , चंचल , है चित्त चोर वो ।
वो विनम्रता, गरिमा, स्वाभिमान की पहचान,
अंदर की शक्ति, रचती हर पल नया जहान।-
जब जब प्रश्नों ने मुझको घेरा है ।
भावो ने मुझे झकझोड़ा है ।
जब संसार लगे मुझे अनजाना सा,
हौंसला लगे डगमगाता सा,
जब जब आत्म विश्वास लगा टूटने,
और हृदय लगा रोने ।
तब तब उन उत्तरों की खोज में,
‘स्व’ को पाने की होड़ में,
इस अंतर्द्वंद ने मौन को अपनाया है ।
जब भी स्वाभिमान पर चोट लगे
अपने भावों को वशकर,
तब तब पहले से मजबूत
अपने आप को बनाया है ।
लक्ष्य की ओर चलने का,
मकसद फिर से पाया है ।
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एक स्त्री -
मजबूती की मिसाल है ,
हर रिश्ते की ढाल है ,
प्रेम का सोलह श्रृंगार है ,
वात्सल्य की धार है ।
एक स्त्री-
अन्नपूर्णा का रूप है ,
परिवार का आधार है ,
सृष्टि का वरदान है,
एक स्त्री,
हाँ ! एक स्त्री …
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अंतर्द्वंद -
ख़ुद से हो जाता है जब कभी-कभी,
तो चल पड़ती हूँ फिर से शांति की तलाश में,
अपने अंदर उलझे हुए कुछ सवालों के जवाब ढूँढने,
मौन -
मेरा वो सरल सा रास्ता है
उनको पाने का,
अपने आप को पहचानने का,
सही दिशा में सोचने का
मन में उमड़ रहे भावों को शांत करने का ।
ये मौन मेरा -
ख़ुद पर विजय का साधन है ।
मुझे स्वयं को अनुशासित तथा मजबूत रखने का मार्ग है ।
मेरा ‘स्वाभिमान’ मेरी पहचान है ।
मेरी ‘आत्मविश्वास’ मेरा अस्त्र है
तो ‘मौन’ मेरा शस्त्र है ।
ख़ुद को खुदी से जीतने का,
सही और ग़लत में पहचान का,
जीवन बाधाओं को पार करने का ।-
क्या लिखूँ तुम्हें -
पूनम के चाँद सा,
आरती के गान सा,
सूरज की धूप सा,
या दीपक की ज्योति सा,
वेदों के वचनों सा,
पावन शीतल पवन सा,
बोलो क्या लिखूँ तुम्हें ?
क्योंकि तुम तो-
फूलों पर डोलते भँवरों,
कोयल की कूक,
झरनों के कलकल,
सितारों की टिमटिमाहट,
मेरे गीतों के राग हो तुम,
या लिख दूँ, की मेरे जीवन का मान हो तुम ।
तुम मेरे अंतर्मन की आवाज़ हो ।
शब्दरहित एक भाव हो तुम,
कल्पना का विस्तार हो तुम,
मेरे दिल का भाव हो तुम,
जीवन का सच्चा साथ हो तुम ।-
खूबसूरत हँसी के पीछे का दर्द
और
दिल की कहानी हर किसी को समझ नहीं आती ।-
पसंद नहीं व्यर्थ तर्क करना ।
अब रास आता है मुझे,
आत्म सुकून,
ख़ुद का साथ,
मन के भाव और मेरी कलम …✍️-
केवल तुम -
केवल तुम ही हो सुकून मेरा ।
तुम से ही है मेरी भावनाओं की धारा ।
तुम से ही निकलती है मेरे
राग और गीतों की विचारधारा ।
तुम विश्वास हो मन का
तान हो दिल का
अहसास हो हृदय का ।
हाँ सिर्फ़ तुम
केवल तुम ।-