जन्मों–जन्म
तू मिले तो खिल उठूं मैं
तू मुस्कुराए तो सज जाऊँ मैं
तू माने तो सब मन जाऊ मैं
तू बसें तो ठहर जाऊ मैं
तू बहन हैं.....
तू सखी हैं.....
तू जीवन हैं.....
तू दुनियाँ हैं
तू मां हैं.....
जन्मों–जन्म_ _ _
बस.....
जन्मो–जन्म तू साथ रहें....-
तुम्हारा दिया गुलाब
अपना सु़र्ख रंग ना ला सका
इस अधूरे गुलाब की ही तरह
रह गए अधूरे,....
तुम्हारे वादे भी....
तुम्हारा दिया गुलाब...
अब रंग बदल सफेद हो गया
एकदम....
तुम्हारे ही तरह
उसने भी हाथ छुड़ा लिया.... सफेद रंग के जैसे
मेरे हसीन सपनों को कफन ओढ़ा गया......
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जब तुम मिले थे तो सर्द गुलाबी का मोसम था
थी अनकही नासमझी सी कहानियाँ हमारी
और आज सालों बाद जब तुम बिन बैठी सोचने
सच मानो....
एहसास हुआ अपनी नादानियों का-
तेरी दुआओं में रहूंगी
तेरे सपनों में रहूंगी
तेरे हिस्से के सजे
हर किस्से में रहूंगी
तेरी राहों में रहूंगी
तेरी पनाहों में रहूंगी
बनकर मीठी-सी बात
तेरे रूह में रहूंगी
हां---------
मैं एक याद हूं
इसीलिए-------
खुबसूरत याद बन
तेरे दिल में रहूंगी
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बहुत दिनों बाद....
जब इस गली से
मैं गुजरती हूँ......
लगता हैं ऐसे__
जैसे सजी–धजी
अपनी बगीया से गुजरती हूँ......
बगीया मेरी.....
शब्दों की....
भावनाओं की.....
उम्मीदों की....
सपनों की.....
बातों की....
यादों की.....
सजी–धजी, बनी–ठनी__
एहसासों की माला में शब्दों की लड़ी–पड़ी
मेरी ये बगीया सजी -धजी-
तूने जो भी दिया
बेहतर ही दिया
फिर.....
धुप में छांव हो
छांव में धुप हो
या___
राह में मंजिल हो
मंजिल तक खुबसूरत सफर हो
जिंदगी....
तूने जो भी किया
अचल से अपने आंचल तले
जीवन-जीने को बेहतर सहारा दिया-
माँ सिर्फ जीवन नहीं देती
जीवन को निभाने और संवारने
का खुबसूरत हुनर भी देतीं हैं
वो रिश्ते भी देती हैं...
जो माँ जैसे ही होते पास और खास
वो दादी-नानी का प्यार-दुलार
वो मासी-बुआ का सभी के डांट से बचाने वाला परवाह
वो चाची-मामी का रूठे मन को बहलाने वाला हंसी-मजाक
वो बहनों में झलकती तुम्हारी सूरत-सीरत वाला ख्याल
माँ.....
तमाम रिश्तों को जीने का ख्याल
खुद से ज्यादा अपनो का ख्याल
जीवनराग को गुनगुनाने का ख्याल
घर-बाहर सब बखूबी संभालने का ख्याल
हर दौर में जीवन जीने का ख्याल
माँ.....
तुमने ही तो दिया हैं
जीवन को सजाने-संवारने का ख्याल
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ये कैसी दुर्दशा हैं.....
विज्ञान भी हैं
तकनीक भी हैं
लेकिन____
मानवता नहीं हैं......
किसी के मर जाने पर राजनीति
किसी के जीवन पर अर्थनीति
कहीं दवाओं की किल्लत
कहीं सांसों की जिल्लत
वाकई___
ये कैसी दुर्दशा हैं....
मौत ने भी क्या तांडव रचा हैं
किसी का उजड़ गया घर-संसार
किसी का सूना हो चला आंगन-चौबारा
कहीं अस्पताल कम पड़ जाने का हाहाकार
कहीं जलती-सुलगती लाशों से पट जाता श्मशान
ये कैसी दुर्दशा हैं.....
हर घड़ी छलते इंसान इंसानियत को
मानवता भी अब शर्मसार हैं-
तुम मिले मुझे
तो मानों.....
खुशियों की महफ़िल सज गयी
बेख्याली में डूबे
मेरे दिल को
तुमसे सजे ख्वाब की
चाहत-सी लग गयी
तुम्हारे इस बेइंतहा मोहब्बत में
मैं.....मलंग हो गयी
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दो प्याले सजे-सजाये मिले
दुख भी हैं
सुख भी हैं
छलके-छलके नैनों के जाम भी हैं
जीवन की मधुशाला में
थोड़ी धूप भी हैं
थोड़ा छांव भी हैं
क्या हुआ जो___
थोड़ा टूटा-सा हैं ये दिल
या......
थोड़ा बिखरा-सा हैं ये दिल
ये दिल तो....
ये दिल तो...
यादों के नशे में मदमस्त-सा हैं
ये मेरा दिल....-