Garima Buva  
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My Published book on your quote - ज़िन्दगी का सफर and ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा
Joined 24 April 2020


My Published book on your quote - ज़िन्दगी का सफर and ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा
Joined 24 April 2020
27 JUN 2023 AT 21:57

देखते ही देखते ना जाने ख्वाब कहाँ गुम हो जाते है
शायद इन काले अंधेरों में वो भी कहीं छुप से जाते है
कभी कभी नन्हे कदमों के साथ ये दबे पैर आते जाते है
या कभी पूर्ण सच्चाई में परिवर्तित ये हो जाते है
ये ख्वाब ही तो है
जो
कभी हसीन या भयानक सा मंज़र दिखला जाते है
या फिर
मनुष्य के निर्णय को भविष्य से साक्षात्कार करवा जाते है

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28 JAN 2022 AT 15:24

मेरी तन्हाई अक्सर मुझसे पूछती है, आखिर क्यों है तू इतनी उदास
मेरी तन्हाई अक्सर मुझसे पूछती है, आखिर क्यों है तू इतनी उदास
लगता है
आज फिर किसी की
"गद्दारी " की खबर हुई है — % &

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26 DEC 2021 AT 19:26

बिखरी हूँ तो क्या हुआ,अब तक टूटी तो नहीं मैं
टहरी हूँ तो क्या हुआ, अब तक सिमित तो ना हुई मैं
है कोसो दूर मंज़िल फिर भी अब तक रुकी तो नहीं मैं
खुद की तलाश मैं "मुसाफिर" बन
बस अब बढ़ चली हूँ मैं

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26 DEC 2021 AT 19:18

बदलते इंसान है पर नाम रिश्तों पर लगाते है
साथ निभाने की औकात नहीं जिनकी वो वक़्त को ख़राब बताते है
मन में छल लिए वो लोगो को गले लगाते है
फरेब की सीढ़ी चढ़ अपनी मंज़िल तक वो जाते है
मंज़िल पाकर वो लोग घमंड में बड़ा इतराते है
अपने प्रपंचो को याद कर आजकल वो बड़ा मुस्कुराते है
मगर अहंकार में चूर वो मुर्ख ये भूल जाते है
शातिर अक्सर गुनाहों के कुछ सबूत छोड़ जाते है
वक़्त के खेल से अब तक कोई नहीं बच पाया है
महाभारत के ज़रिये पापी दुर्योधन का तक अंत आया है

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23 DEC 2021 AT 21:15

In the darkest hour's of my life
"Hope" is my saviour
When I am alone in the midst of asperity
It is my unraveling satiety
There is no trace of life without it
So lets just hope for the best and relish every moment inspite of disquiet

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14 DEC 2021 AT 20:32

रोते तो सब है मगर क्या दुख रोने से ही कम होता है
चलते तो सब है मगर क्या चलना ही आगे बढ़ना होता है
शायद नहीं क्यूंकि
सही दिशा में जो कदम ना बढ़े तो
रास्ते
अक्सर गुमराह कर देते है हर किसी को
और जो दुख भुला कर ज़िन्दगी ना जिए
अक्सर ज़िन्दगी भी भुला देती है उनको

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6 DEC 2021 AT 22:10

मैं किसी की मंज़िल हूँ, ये ग़लतफहमी थी मुझे
आज महसूस होता है की शायद
"मैं एक सड़क थी"
जो दुसरो को मंज़िल तक तो ले जाती है
मगर खुद वही रहती है

जो अंत में रुक जाती है किसी चौराहे पर
और पहुँचा देती हैं राही को
उसकी निर्णयकारी सीमा पर

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30 OCT 2021 AT 10:02

हम जीते तो रोज़ है मगर अब हर सुबह ख़ास नहीं होती
कैसे समझाऊँ अपने दिल को मैं
की अब तुमसे मुलाकातें तो होती है
मगर उनमें अब "वो बात नहीं होती "

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15 OCT 2021 AT 14:42

सबसे मुश्किल होता है
अपने दिल को सच समझा पाना
किसी अपने के साथ बीती हुई यादों को मिटा पाना
आसान लगता है लोगो को जिस कहानी का हर किरदार
असल में
बहोत मुश्किल होता है उस कहानी को
अंत तक सभी किरदारों के साथ खत्म कर पाना

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18 SEP 2021 AT 20:54

अगर तूम पहले मिले होते तो
बेवफ़ा तुम्हारी जगह मैं बनती
तुम्हारी हर फ़रियाद को
अनसुना मैं करती
काश! पहले मिले होते तूम मुझे
तुम्हारे असली रूप के साथ
तो शायद मैं तुमसे दिल लगाने
की भूल ना करती

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