थोड़ा ऐतबार सोच समझ के कीजिएगा
मुमकिन नहीं हर जगह और हर पल मिलेंगे वो आपको
मंजर ए मुहब्बत क़यामत ढान देता है बहुत
याद नहीं रख पाते खुदको और भूल नहीं सकते उनको-
पत्तों ने रंग बदला और वो गिर गए,
वरना पेड़ को संभालने में कोई दिक्कत नहीं थी…
मेरे पास लफ्ज़ थे सोच थी और आवाज भी
पर संघर्ष इतना हुआ की सजा मिली चुप रहने की…-
ना मतलब था,ना मतलब है..दूर हमसे..शोहरत भरा जमाना
आपको दिल में रख कर..आपको ही कागज पे लिखते हैं
कहीं सुन लो हमारा नगमा..तो अपनी पलकों को झुका देना
हमें हिचकी बता देगी की..आप आज भी हमें याद करते हैं-
वक्त नहीं कि दूसरों के लिए साबित करूँ खुद को,
मशरूफ हूँ आजकल बेहतर बनाने में खुद को...
कहीं ज़िंदगी की ये शाम अधूरी ना गुज़र जाये
सब्र तराशू ख़ुद को बेहतर बताने किसी अपने को-
एक बार तो यूँ होगा कि थोड़ा सा सुकून होगा,
फिर ना दिल में कसक और ना सर पे जूनून होगा
कोई ‘मन और मौन’ को समझनेवाला भी होगा
फिर ना कोई ख्वाफ़ रहेगा ना कोई ख़्वाब होगा-
ज्यादा खींचकर उलझाने से बेहतर है,
ढील देकर खुले छोड़ देना,
फिर चाहे वो उड़ने वाली पतंग 🪁 हो
या कोई रिश्ता🤝 अपना…..-
बहुत अर्जियाँ पड़ी है पर, वफ़ादारी सांस रोकी है
फ़िसल कर वक़्त की लहर पर, उम्र गुज़र रही है
बाक़ी है मिन्नतें दश्त पर, उम्मीदों का दामन भी है
जिया तो कुछ भी नहीं पर, ज़िंदगी निकल रही है-
झुकने का शौक तो हमें भी नहीं था
पर वक्त के मनसूबों ने ढा दिया था
जो कल की पुकार रोक चुका था
उसे आज की दौर ने रुला दिया था-
ये वक़्त ……
हो सके तो ....पीछे मुड़ कर देख
तूने मुझको.…… कितना पीछे छोड़ दिया
ये साल…..
गुज़र जाएगा …..हर साल की तरह
या मुझे कोई……नया वक़्त मिल जाएगा-
आओ नये साल की शुरुआत अपने चाय की प्याले से करते है ☕️
शक्कर की ज़गह इश्क़ और अदरक की जगह फिक्र मिलाते है. ❤️-