अबके क्या लिखूँ सोचता हूँ, दुनिया बड़ी जजमेंटल हो गई है यारों.. जरा सा दर्द छलकाता हूँ तो बिना शराब ही प्याला नशा दे जाता है.
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समेटना सीखो दिल के टुकड़ों को, कोई बड़े शौक से बिखेर जाता है, हम किसी और के लिए जीते हैं मगर वो अपने लिए जी लेता है.. जिंदगी का रस्ता है जनाब मोड़ आना लाज़मी है, वरना सीधे रस्ते को आजकल कौन अहमियत देता है.
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रिश्ते का "जोड़" सही होना चाहिए फिर जिंदगी का "मोड़" कितना भी गलत हो फर्क नहीं पड़ता.
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जिथं चुकांवर कधीच "पोतेरा" फिरवला जात नाही ना तोच "सातारा" भावा.
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शायद इसी लिए आज मन उदास है, बरताव अपनों का जैसे, शरीर पे कोई "लिबास" है.
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क्या उम्मीद रखी जाए भलाई की इस दुनिया में, जहाँ झूठ "सफेद" और सच हमेशा "काला" होता है.
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खुद ही बन अपनी नय्या का खिवैया ए दोस्त, तलातूम तो अपनों का रवैया भी बदल देता है.
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बेमतलब है तेरा झटपटाना ए दिल, यहाँ दम तोडने तक दुनिया कंधा नहीं देती.
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ना गिला है रेगिस्तान का, ना शिकवा है की सफर बंजर है.. तकलीफ क्या होगी गैरोंके घावों की जब देखें अपनो के ही हाथों में खंजर हैं.
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एक नींद ऐसी भी आए जो थकान मिटा दे, टूट चुके हैं बस अरमानों का मकान बनाते बनाते.
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