Gagandeep Singh Bharara   (Gagan - निशब्द)
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Joined 12 August 2020


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15 OCT 2023 AT 8:39

छुपा के आँसू ना तुम रोया करो,
मेरे काँधे का सहारा लिया करो,
दर्द को यूँ दिल में ना दबाया करो,
हो सके तो मुझे बताया करो।

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14 OCT 2023 AT 7:01

बट रहा संसार

बट गया है संसार देखो,
किस तरह की सोच में,

एक ओर खाली थाल है,
स्वाद खाने का कहीं खराब है,

तप्ती गर्मी में काम करता कोई मजदूर है, 
कहीं बिन ऐसी के काम करता मजबूर है,

रात की चादर ओढ़े सो रहा इंसान है,
सोने के बिस्तर पर बिन नींद कोई बेहाल है,

रोटी की कीमत कहीं जान से भी ज्यादा है,
कहीं भरे पेट को और ज्यादा पैसों की भूख है,

कहीं माँ की तरसती आँखों का प्यार है,
कहीं बच्चों का दिया वृद्ध आश्रम का फरमान है,

कहीं रंग बिरंगे फूलों के महकते बाग हैं,
तो कहीं झूट से सजी हुई बेरंग मुस्कान है,

बट गया है संसार देखो,
किस तरह की सोच में।

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13 OCT 2023 AT 9:55

ज़िंदगी की लिखावट

लिख कि लिखना जरूरी है,
किसी मोड़ पर खुद से मिलना भी जरूरी है,

बदल कि बदलना भी जरूरी है,
वक़्त के साथ यूँ खिलना भी जरूरी है, 

रास्ते पर आएँगे मील के पत्थर कई,
कर के चिंतन, आगे बढ़ना भी जरूरी है,

बनेगा कारवाँ जो लेके साथ चलोगे,
खुशियों को बांटना भी तो जरूरी है,

जिंदगी की लिखावट यूँ ना बदली जाती है,
कर के मेहनत, खुद को सींचना भी जरूरी है,

लिखने वाले ने तो लिख दी है मंज़िल तुम्हारी,
रास्ते पर अडिग हो कर चलना भी तो जरूरी है,

लिख कि लिखना जरूरी है,
किसी मोड़ पर खुद से मिलना भी जरूरी है।

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11 OCT 2023 AT 14:56

रंग

रंगों से सुसज्जित है ये हमारी दुनिया,
पर मिश्रित है इसमें दुख-सुख के रंग,

किसी को मिलेगी दुखों की काली छाया,
किसी के हिस्से में आयेंगे मधुबन के रंग,

ना जाने पर कब खुलेगा कौन सा पिटारा,
किसके जीवन में भर जाएँ खुशियों के रंग,

काले घने बादलों का निश्चित है छट जाना,
सुनहरी सुबह में भी तो बसे हैं कितने रंग,

आज दुखों की फैली है हर ओर बेला,
तो कल होंगे उल्लास भरे मेलों के रंग,

रंगों से सुसज्जित है ये हमारी दुनिया,
पर मिश्रित है इसमें दुख-सुख के रंग।

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8 OCT 2023 AT 23:06

आईना

देखा तो होगा अपने चहरे को आईने में अक्सर,
कभी किसी और की नज़रों से देखा है खुद को,

ज़माने में कितनी कमी है ये तो सुना है तुमसे अक्सर,
पर किया क्या है तुमने, ये पूछा कभी खुद को,

खाली रहते हैं ये ऊँचे मकान यूँ तो अक्सर,
खाली क्यूँ है मकान तुम्हारा, कभी पूछा खुद को,

वतन को छोड़ कर जाने के बाद देखा है लोगों को रोते अक्सर,
यहाँ रहकर भी हो तुम अलग, दर्द क्या होता नहीं खुद को,

देखा तो होगा अपने चहरे को आईने में अक्सर,
कभी किसी और की नज़रों से देखा है खुद को।

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7 OCT 2023 AT 19:48

कब बिछड़ गए तुम अपनों से,
ये सोचा भी ना होगा, कभी तुमने,

कि जिस माँ ने पाला पोसा था तुम्हें,
आज उसके कर्ज़ चुकाने से किया मना तुमने,
कि जिस पिता ने दुखों से रखा दूर तुम्हें,
आज उसके बुलाने पर किया इंकार तुमने,

भाई-बहन अब अपने घर पर खुश दिखे तुम्हें,
कि गम के फंसाने ना पूछे उनसे कभी तुमने,
जो दोस्त हर बात में साथ दिखते थे तुम्हें,
छूटी क्या वो गलियाँ, तोड़ा उनसे नाता तुमने,

मिली चंद सिक्कों की खुशियाँ क्या तुम्हें,
तोड़ दिया अपनों से ही क्यूँ रिश्ता तुमने,
ख्वाहिशों के मुकाम ने यूँ जकड़ा तुम्हें,
कि खुद को कर लिया अपनों से दूर तुमने,

बॉस का टेलीफोन क्या आया तुम्हें,
माँ-बाप का फोन काट दिया तुमने,
रिश्तों ने छोड़ा कभी ऐसे तुम्हें,
कि अपने ही बच्चों को बड़ा होता ना देखा तुमने,

कब बिछड़ गए तुम अपनों से,
ये सोचा भी ना होगा कभी तुमने।

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5 OCT 2023 AT 10:12

रिश्तों का बटवारा 

ज़िंदगी के सफ़र में,
उलझा है रिश्तों का ताना बाना,

बिन जिनके ना होता गुज़ारा,
साथ ना हो सही, तो होता केवल बटवारा,

कभी आँधी, तूफानों में निभाते हैं रिश्ते,
कभी पतझड़ के पत्तों की तरह छोड़ जाते ये तन्हा,

कभी अहसानो के तले दबाये जाते ये,
कभी बिन कहे छू जाते ये दिल हमारा,

ज़िंदगी के सफ़र में,
उलझा है रिश्तों का ये कैसा ताना बाना।

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1 OCT 2023 AT 20:39

सभ्य समाज का असभ्य इंसान

ऊँच नीच की पहने वो वेश-भूषा,
बना लेते दौलत की यूँ दीवारें,

गरीब दुखों के केवल घर सजा ले,
खुशियों के ठेकेदार हैं जैसे, वो हमारे,

सभ्य समाज की बातें तो खूब हैं करते,
असभ्य लेकिन होते व्यवहार हैं उनके,

साफ़ सुथरी, चमकती पोशाकें पहने,
मन लेकिन मटमैले खूब है उनके,

भगवन को भी ना छोड़ा है जिसने,
पैसों के दम पर छोटी कतार बनाते,

गाड़ी लंबी, ऊँचे बड़े मकान हैं महलों जैसे,
दिल के छोटे, और किरदार हैं लेकिन खाली उनके,

सभ्य समाज के इंसान ये कैसे,
धन दौलत ही है, पीर पैगम्बर जिनके।

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1 OCT 2023 AT 16:23

तन्हाई

तन्हाई में होते थे वो, तो बुला लेते थे हमें,
हम तन्हा क्या हुए, छोड़ वो हम को गए,

मोहब्बत की देते थे जो दुहाई अक्सर,
तोड़ कर दिल हमारा, वो यूहीं चले गए,

बातें जो खुद सुबह-शाम करते थे,
आज रात के सन्नाटे की तरह चुप हो गए,

दिलों को जोड़ने की करते थे जो बातें अक्सर,
वो तो सपनों में भी हमें तन्हा छोड़ कर गए,

तन्हाई में होते थे वो, तो बुला लेते थे हमें,
हम तन्हा क्या हुए, छोड़ वो हम को गए।

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1 OCT 2023 AT 13:45

तन्हाई में होते थे वो, तो बुला लेते थे,
हम तन्हा क्या हुए, छोड़ वो हम को गए,

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