G Azad  
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Joined 30 September 2020


Joined 30 September 2020
19 DEC 2021 AT 10:54

अंधेरों की शिक़ायत उजालों से करने वालो
अपनी जेबो से ज़िन्दगी के चिराग निकालो

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18 DEC 2021 AT 18:39

कभी थे बुलंदीयो पर जो अब पस्त नजर आते है
इतना अंधेरा है के शोले भी चिराग़ नजर आते है

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19 MAR 2021 AT 13:30

ये मेरी कम नजरी ने समझा के तुम हो दुनिया मेरी
मगर वक्त ने समझा दिया के तुम भी दुनिया के निकले

अरमा बहुत थे सीने में मेरे के बेहतर हो दुनिया मेरी
ख्वाब तो ख्वाब हे और तुम भी इस दुनिया के निकले

अब शिकायत ही क्या जब उजर गई हो दुनिया मेरी
हम दुनिया में न निकले और तुम दुनिया के निकले

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14 MAR 2021 AT 18:07

ये दरिया का पानी,पानी सी जवानी
जवानी के ख़्वाब, ख्वाबों में तुम

ये निकलता सा चांद, चांद सी तुम
इस चांदनी रात में, ख्वाबों में तुम

किसी राग में ढलती, मचलती सी तुम
सुरीले से राग में, ख्वाबों में तुम

फूलो सी खिलती हुई खुशबू सी तुम
बहके हुए से भवरे के ख्वाबों में तुम

गर्म हवाओं से झुलसती हुई जमी देखे
भरी बरसात सी किसी ख्वाबों में तुम

देखें पत्थर तुझे तो धड़के धड़क धड़क
किसी ख्वाब का ख्वाब, ख्वाबों में तुम

अब कलम से क्या लिखूं तारीफ आज़ाद
हर किसी का ख्वाब, हर ख्वाबों में तुम

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12 MAR 2021 AT 15:46

खुदको ही खोकर फिर किसको पाऊंगा में
तू ही न रहा ज़िंदगी में तो किसे चाहूंगा में

ऐसी जिंदगी की तो कोई तमन्ना ही नही मुझे
मयखाना तो हो और मय को तरस जाऊं में

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9 MAR 2021 AT 16:29

जो सिकवाए ताल्लुक था अब तो वो भी टूट गया
अब तू ही बता तेरे मेरे दर्मिया अब भी बचा हे क्या

किसी की आंखो में ठहरे थे किसी ख्वाब की तरह
अब तू ही बता अब भी कोई ख़्वाब बचा हे क्या

एक जुनून ए इश्क था मेरे ऊपर सवार दिन रात
अब तू ही बता के कोई अहदएवफा बचा हे क्या

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8 MAR 2021 AT 16:52

अब तुम आंसु बहा तो रहे हो
किसी की मोब्बत नीलाम करके

तुम इस दिल से जा तो रहे हो
किसी की दुनिया वीरान करके

कहां मिलेंगे खूबसूरत नजारे
किसी की सिसकियां बर्बाद करके

मोहब्बत की कोई कीमत नहीं
फिर भी मुहब्बत को नीलाम करके

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4 MAR 2021 AT 13:36

घर से भी तो नही निकला और आवारा भी रहा में
हासिल भी हे कुछ और खुद की तलाश में भी रहा में

ख्वाबों का पीछा करते करते वाकई पीछे भी रहा में
उड़ाने थी बहुत ऊंची और फक्त उड़ानों में ही रहा में

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28 FEB 2021 AT 10:02

तुझसे यू बिछड़ना भी चाहूं तो बिछड़ भी नहीं सकता
तुझे सिद्दतसे जो पाना भी चाहूं तो पा भी नही सकता

अजीब कशमकश में है जिंदगी इन दिनों आजकल
जिंदा रहु तो तकलीफ हे और में मर भी नही सकता

कुछ हसी ख्वाब पलको पे सजाए थे बच्चपन में मेने
उसी बच्चपन को वापिस हासिल भी नही कर सकता

बड़ी बेबाक सी थी ज़िंदगी सोचता हु जो अब बैठकर
ये जिन दिनों बात ही उन दिनों बात, भूल नही सकता

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25 FEB 2021 AT 16:56

मुझसे बिछड़ कर भी वो मेरा ही रहा
सूरज तो निकला मगर अंधेरा ही रहा

रास्ते बहुत थे मंज़िल तक जाने के
ना जाने क्यों उम्र भर सफर मे ही रहा

काटदी एक उम्र इस एक उम्मीद पर
और फिर भी उम्र भर मलाल मे ही रहा

कहता था वो मुझसे। में फकत तेरा हु
इस अहदपर ज़िंदगी भर इंतज़ार ही रहा

मेरी बर्बादी का ज़िम्मेदार तू खुद हे पर
मगर ये इल्ज़ाम ज़िंदगीभर मेरे सर ही रहा

में दिनरात तुझे मे बदलते मौसम में ढूंढता हु
और तू मोसमो की तरह रंग बदलता ही रहा

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