तुम जो करोगे 'शान' यूं ग़म -ए- फ़िराक़ को बयां
दास्तान -ए- हिज़्र हमारी को फिर रोयेगा कौन-
दिन ईद का और महबूब की कॉल तक नहीं
रोज-ए-ईद थी कि रोज-ए-क़यामत थी ईद ये
राह-ए-इंतेजार में गुज़र गया 'शान' दिन सारा
इब्तिदा-ए-हिज़्र की पूरी अलामत थी ईद ये-
दिन ईद का आज है 'शान'
गले लगते हुए दोस्त स्टेटस पे आयेंगे
हमारी तो ईद तब होगी
जब वालिद हमारे हमें गले से लगायेगे-
मेरे हाथों में तेरा मेहताबी मासूम चेहरा हो
हमारे आस पास खुशबुओं का पहरा हो
मैं सुनूं जिस घड़ी 'शान' धड़कन तेरी
बस सांसे चल रही हों और वक्त ठहरा हो-
प्यार सीखा है उसने मुझसे
अब किसी से 'शान' खूब इश्क वो निभायेगी
रूठ जाएगा जब शोहर उसका
मेरी ग़ज़ल शायरी सुनाकर उसे वो मनाएगी-
याद हैं 'शान' तुम्हें ख़्वाब अब तक मेरे
मैं तुम्हें वैसे ही गले लगाना चाहता हूं
गोद में रख सर, तू देखना अश्क आंखो में
कुछ यूं तुझे मैं ये दर्द दिखाना चाहता हूं-
नेक सीरत, खूबसूरत और बा हया है वो
इल्म ओ हिक्मत का जलता दिया है वो
उसकी मां जैसी हैं खूबियां 'शान' उसमें
सर से पांव तक अपनी मां पर गया है वो-
कयामत नजरें, उसके होंट गुलाबी
रूख पर मासूमियत का पहरा था
दुनिया थी मेरे हाथो में 'शान'
मेरे हाथों में उसका चेहरा था-
वक्त वक्त की बात है आज उनका सलाम आया
यह तो कुछ यूं हुआ जैसे नीम पर आम आया
महफिल सजी थी 'शान' बयान-ए-वफा हो रहा था
न जाने क्यों उनकी जुबां पर मेरा नाम आया-
मुझे देखा नहीं मदद करते कभी तुमने
मुझे तस्वीरों का शौक 'शान' ज़रा कम है
गरीब गरीबी को लेकर इतना नही रोता
वक्त ए मदद तस्वीर से उसकी आंख नम है-