रंगरेज 🇮🇳   (Saurabh Kaistha)
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Joined 15 November 2017


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Joined 15 November 2017
18 DEC 2022 AT 21:13

ये जो हल्का हल्का मुस्करा रही हो
क्या मुझको करीब बुला रही हो

ये जो झटक कर जुल्फें लहरा रही हो
क्यूं मेरी धड़कनें बढ़ा रही हो

खुद ही देख कर नजरें चुरा रही हो
क्या मुझको तुम सता रही हो

ये पाजेब जो छनका रही हो
क्यूं मुझको तुम पागल बना रही हो

खुली आँखों से सपने देख रहा हूं
अब तुम दिन में भी याद आ रही हो.

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10 OCT 2022 AT 23:56

हटाओ तो सही तुम धूल आईने से
चाँद का दीदार ना हो तो कहना.

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9 OCT 2022 AT 2:47

तुम जो ये कहते हो "नहीं है कोई परिभाषा प्रेम की"

फिर उसे देख कर मेरी आँखों का नम हो जाना प्रेम नहीं है क्या ?

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9 OCT 2022 AT 2:32

गया था एक मुद्दत बाद आज फिर गली में उसकी
सहम सा गया है दिल अब उसका खाली दरीचा देख कर.

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6 OCT 2022 AT 20:31

दिल में छुपा रखा शायद उसने कोई राज गहरा था
गले लगा कर रोई थी बहुत वो छोड़ जाने से पहले.

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4 JUL 2022 AT 23:00

जाग उठी फिर सब हसरतें जवानी सा मंजर हो गया
बहता था जो आँखों से सैलाब सूख कर बंजर हो गया
देखा है जब से तुम्हें हिचकोले खा रही हैं खबाहिशें
टूटा सा था जो दिल मेरा फिर एक बार सिकंदर हो गया
मेरी आँखों में दिखा वो महज धुंधला सा चेहरा है मेरे अतीत का
सच मानो उसको दिल से निकाले हुए तो एक जमाना हो गया
जो हो इजाजत तो भर लूं मेरी मुहब्बत अब तुम्हें बाहों में
यूं छुप-छुप कर देखते हुए तो अब एक अरसा हो गया...

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29 JUN 2022 AT 3:40

वो पहाड़, वो पंछी, वो दरख्त,
वो नदियों की गीली रेत गवां बैठा

शहर की और जो भागा
वो गांव के लहलहाते हुए खेत गवां बैठा

गवां दी वो बेपरवाईयां, वो अठखेलियां
वो लड़कपन की सब नादानियाँ

उन दिनों जेब खाली थी मगर मैं अमीर था
मैं वो खाली जेब गवां बैठा.

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14 JUN 2022 AT 1:55

कर ले कैद आँखों में या गले से लगा ले मुझको
मैं बुझता हुआ सा चिराग कल अमावस हो जाऊंगा.

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20 MAR 2022 AT 22:18

तुम जो साथ थीं तो रंग थे, बहारें थीं, ये मेले थे
अब तुम नहीं तो नींदें भी नहीं, सकूं नहीं, कुछ भी तो नहीं.

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18 MAR 2022 AT 23:07

मौत भी मजाक उड़ाने लगी है अब तो

पूछती है,
कहाँ हैं वो बाहें जिनसे लिपट कर तुझे मरना था.

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