frozen feelings   (shalini jain)
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Joined 11 March 2018


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26 AUG 2022 AT 23:44

इस दुनिया की कहानी में मत उलझ
रस्मों की रीत है बस निभाता चल
मिलता चल बिछङ़ता चल
दौर है जिसका बस वही कर्ता चल
ना रख कोई सामान किसी मुसाफिर का
हर किसी का हर कर्ज़ उतारता चल
कोई नहीं हाथ में तेरे हाथ के सिवा
तू अपना साथ बस निभाता चल। ।
— % &

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26 JUN 2022 AT 10:25


एक पल को जब वो कमज़ोर हुआ,
तब जाना कि पत्थर में भी मन था...— % &

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5 MAR 2022 AT 11:08

दिनभर भटके डूबे जागे
खुदके ही दर का रास्ता ना जाने।।
— % &

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28 FEB 2022 AT 0:27

जब कोई  अज़ीज़
साथ रहकर दूर जाने लगता है,
तब एक लम्हें में ही ये मेहसूस हो जाता है कि एक हृदय है सीने में। ।

-शालिनी जैन — % &

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6 FEB 2022 AT 19:29

वो रहता है किसी किताब में गुलाब जैसा,
मैं खिलती हूँ उसके लबों पर मुस्कराहट की तरह

वो रहता है किसी आँगन में धूप जैसा
मैं बिखरती हूँ उसमें उष्मा की तरह

वो रहता है किसी वीराने में खामोशी के जैसा
मैं रहती हूँ उसमें सूने पहर की तरह

वो रहता है किसी जीत में खिताब के जैसा,
मैं सजती हूँ उसके चेहरे पर खुशी की तरह

वो रहता है किसी नदी के किनारों के जैसा,
मैं मिलती हूँ उससे लहरों की तरह — % &

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30 JAN 2022 AT 10:20

हर नूर बेनूर हो ही जाता है
वक़्त फितरतन जो गुज़र जाता है
रंग कोई भी हो उतर ही जाता है
वादा एक ना एक बार तो मुकर ही जाता है
रिश्ता कोई भी हो नाज़ुक पड़ ही जाता है
धागा रेशम का भी टूट जाता है
दिन कोई भी हो ढलते ढलते खामोश हो ही जाता है
हालातों से हारकर हर कोई एक दिन बैठ ही जाता है।।— % &

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11 DEC 2021 AT 22:37

बस यादों का एक घर हूँ मैं,
और कुछ भी नहीं...
एक लम्हें की तस्वीर हूँ मैं,
और कुछ भी नहीं...
चंद बिखरे अल्फाज़ों की मीत हूँ मैं,
और कुछ भी नहीं...
मेरे उसूलों की टूटी रीत हूँ मैं,
और कुछ भी नहीं...
किसी पुरानी किताब की दबी हुई महक हूँ मैं,
और कुछ भी नहीं...
गर्मी के दिन की सूनी पहर हूँ मैं,
और कुछ भी नहीं...
एक ज़िंदगी का खोया नूर हूँ मैं,
और कुछ भी नहीं...

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8 DEC 2021 AT 12:35

एक हसरत उस वक़्त में थी,

पर वक़्त पर वो रोशनी नहीं आई।।

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3 DEC 2021 AT 23:00

हर रोज़ कोई कमी सी रह जाती है,
रात की नींद बेचैनी में सो जाती है..

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3 DEC 2021 AT 17:48

हर रोज़.....

सपनों को उड़ेल कर
जमा लेता हूँ हर रोज़
अधूरा उन्हें छोड़कर
फिर कहीं चल देता हूँ हर रोज़
दिन ढलते ढलते लौट भी आता हूँ
अस्त व्यस्त ही सही पर घर लौट आता हूँ हर रोज़
आईने में अपनी ही आँखों में झांक कर
खोई हुई सी नज़रों सा देखता हूँ हर रोज़
जो अधूरे छोड़कर निकला था
वो ख्वाब,
फिर से ढूँढता हूँ हर रोज़....

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