Freefolk   (freefolk)
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Not a writer
Joined 8 February 2018


Not a writer
Joined 8 February 2018
25 FEB 2022 AT 23:00

ग़म-ए-दुनिया के बोझों को लिए हम कारवां निकले,
फक़त उलझे हुए हैं यूं कि ना जाने कब कहां निकले।

नसीबों का ही बस इक खेल सा‌ है ये हमारी जिंदगी
किसे आबाद कर निकले, किसे बर्बाद कर निकले ।

कभी ख़्वाबों को पाने के इरादे थे बड़े लेकिन,
बड़े मुश्किल ज़माने के ये सारे इम्तिहां निकले ।

यहां सब ने ही चेहरे पे मुखौटा डाल रखा है,
यहां जो गौर से देखा तो छप्पर से मकां निकले।

फतह करने का दुनिया को इरादा था सभी का पर,
ज़रा देखो वो सब छोड़कर सारा जहां निकले।

तेरी निस्बत है जो पायी ये मेरी खुशनसीबी थी,
तेरी निस्बत से जो निकले तो फिर हम शादमां निकले।

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14 FEB 2022 AT 16:21

उमड़ा हुआ हुजूम-ए-तमाशा है दायें-बायें,
तन्हा हैं मेरी आंखें और उनका इन्तज़ार है।

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25 JAN 2022 AT 12:51

घर है मेरा घर ये कोई काशान नहीं है,
काशान ये बन जाए ये भी अरमान नहीं है।

ख्वाबों को सच बनाने को हां छोड़ा है मैंने,
घर मेरा मगर आज भी वीरान नहीं है।

तुम खुल के बता सकते हो सब राज़ की बातें,
घर में मेरे, दीवारों के कोई कान नहीं है।

महफ़िल भी है, अहल -ो -अरबाब भी हैं सारे ,
महफ़िल की और मेरी बस जान नहीं है ।

खुद को न किया वक़्फ़ कभी दुनिया की रीत में ,
फिर भी वो मेरी ज़ात से हैरान नहीं है।

वो दौर भी एक दौर था जब शौक़ थे मेरे,
वो दौर कब गया ये मुझे ध्यान नहीं है।

परवरदिगार है मेरा पालेगा मुझे वो,
मन मेरा मुस्तक़बिल से परेशान नहीं है।
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काशान- सर्दियों को आराम से गुज़ारने की जगह

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20 JAN 2022 AT 17:33

किताबों ने जो बतलायी थी ज़माने की रवायत
ज़माने ने बतलाया के सब झूठ हैं जनाब।

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14 JAN 2022 AT 17:23

सुनो जाना,
एक आखरी इजाज़त दो
हमें तुम ये बताने की
के चाहा था तुम्हे हमने कभी।
हाँ सोची थी कभी
तुम्हारे साथ ही ये ज़िन्दगी।
तुम्हारे इक़रार ने ही तो
हमें दिया था ये हौसला
के सजाये ख्वाब मुस्तक़बिल के
तुम्ही को सामने रखकर।
मगर तुमने तो कभी ये बोला ही नहीं
के जो भी था हमारे दरमियान में
वो दिलकशी थी बस पल भर की।
हम ही बने पागल लगाए दिल को बैठे थे ,
न जाने कितने सालों से सजाये ख्वाब बैठे थे।
हम रहे ला इल्म जब बदला तुमने अपना शरीक,
अपनी ज़िन्दगी रौशन की तुमने पर यहाँ छोड़ गए तारीक।
खैर क्या फ़र्क़ पड़े तुमको कि हो गए हैं हम बर्बाद ,
तुम्हारी शादी अब नज़दीक है तुम्हे उसकी मुबारकबाद।

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23 DEC 2021 AT 15:34

तन्हाई है, रुसवाई है और दिसंबर की सर्द रातें,
एक तरफ ये दुश्वारियां हैं और फिर तुम्हारी शादी।

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6 DEC 2021 AT 13:28

Alone, I am the best and the worst version of myself.

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18 NOV 2021 AT 17:09

अजब सी उलझनों में उलझे हुए हैं हम,
मुसीबत ये है कि मुसीबत पता नहीं।

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12 NOV 2021 AT 17:36

नये बरस की नई- नई आज़माइश मुबारक,
आज मुझको मेरी यौम-ए-पैदाइश मुबारक ।

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26 OCT 2021 AT 18:02

बेख़बर जो रहे उन से तो दिल बेज़ार रहता है,
उन से जुड़े मसलों का ये तलबगार रहता है ।

अजब सी कैफ़ियत रहती है बिन उनकी ख़ैरियत जाने,
जो इक पैग़ाम मिल जाए तो दिन गुलज़ार रहता है ।

गुज़रे थे इक रोज़ को मेरी गली से वो,
उस रोज़ से ये कूचा महकदार रहता है।

तलब कुछ यूं लगी उन से गुफ्तगू की हमें,
बातें बस शुरू होने का इंतज़ार रहता है।

ख़यालों को मेरे कुछ ऐसा बहका दिया उन्होंने,
भटकता है ये, बे-दर-ओ-दीवार रहता है।

सुपुर्द-ए-जान-ओ-दिल किया उनकी निगहबानी में ,
दिल मेरा अब उनके इरादों का दरबार रहता है।

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