नई फ्रेम में उसकी वही तस्वीर पुरानी हैं
हर नारी की खुद में एक संघर्ष भरी कहानी हैं..।।
खुद के घर में हैं मेहमान , तो दूसरे घर से आई हैं, बोलो नारी किस घर को आखिर अपना घर बताएगी..।।
गंगा जैसी पावन हैं, पर किस- किस को समझाएगी, हर खिड़की हर दरवाज़े से एक उँगली उठ जाएगी..।।
बन लक्ष्मी , दुर्गा ,सरस्वती यहां हर घर में पूजी जायेगी,
उसी नारी की इज़्ज़त बीच चौहराये फिर बिखेरी भी जाएगी..ll
बाप की पगड़ी , भाई की इज़्ज़त ना जाने कितने रिश्तो का कर्ज निभाती आई हैं,
समय- समय पे उसी रिश्तों से यह लुटती भी आई हैं ..ll
अग्निपरीक्षा ने ना जाने, उसके के कितने सपनों को जलाया हैं
अभद्र तानों से,
सीता जैसी नारी को भी इस समाज ने रुलाया हैं..ll
गर्भ में ही उसकी कर के हत्या , जो मुस्कुराया हैं
नारी से ही हैं संसार, ये समाज कहाँ समझ पाया हैं..।।
उसके सपनों को बेड़ियों से बांध दी जाएगी
अरे तूम ढील तो दो
करने अपने सपनों को साकार वह, जरा भी नहीं डगमगायेगी..ll
जमाने की चुनौती से निकल आगे ,खुद की अलग पहचान बनाएगी
नारी हैं वो ,
खुद की कहानी खुद के कलम से लिख कर आएगी..।।
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