बरसती चांदनी में फकत कोई आरज़ू जल रही है
अपनी ख़बर आजकल मुझे लोगों से मिल रही है
उसके होठों में तो बस इक मुस्कान पुरानी थी
जाने क्या सोचकर मेरी तबीयत मचल रही है
वो इश्क़, वो बातें जो उसने कभी कही नहीं थी
मगर बालों की वो लटें कानों के पीछे से कुछ कह रही है
बेशक वो दिन की शफाख़ रोशनी थी
अब तनहा हूं मैं देखो, अब ये रात कम्बख़त हंस रही है
उसको कहो मेरा दिल कुछ और बेदर्दी से तोड़े वो
इस तरह कहाँ ज़िस्म से मेरे जां निकल रही है
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