तराशा.....
एक अनगढ़ पत्थर को
निखारा.....
बेहद खूबसूरती से
तपाया.....
जिसे ज्ञान की ज्वाला से
नमन उन सभी गुरुओं को
जिन्होंने इस पात्र को सुपात्र बनाया।
~ ऋचा-
चलो फिर से जिया जाए.. 🍀
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जो व्यक्ति निश्चितता और अनिश्चितता के बीच डोल रहा है, उसके लिए तो धैर्य (धीरज)पुल का काम करेगा ।
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मैं पूछती ही रह गई,
इंसानियत ये क्यों मरी....?
सियासत अपने दंभ में
फक़त लाशों की गिनती
गिना कर रह गई!!
~ ऋचा-
....कब से तुम तट पर खड़े हो,
सुनो! मेरी लहरों की ये आहट।
चलें साथ एक अनजाने सफर पे,
चट्टानों से कूदकर.....
अंँगड़ाई ले प्रपात बन।
~ ऋचा
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हवाएंँ कभी कैद हुई है क्या?
सुगंध फैलने से रुकी है क्या?
तो प्रेम में दासता की चाह क्यों?
प्रेम चाहते हैं सभी स्त्री को दास बना
दास सेवा दे सकता है, प्रेम नहीं
सेवा कर्तव्य है, प्रेम नहीं
कोई स्त्री दया नहीं चाहती
वह तो बस प्रेम चाहती है!
वह तो बस खिलना चाहती है!
वह तो बस महकना चाहती है!
~ ऋचा
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बेबसी का उपहास कर, शासकों के द्वंद में
जा पिसी हैं भावनाएं, आज यह किसको बताएं।
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मैं कभी नष्ट नहीं हो सकती
तुम्हारे हिस्से से
तुम चाहो तो भी नहीं....
दूब जो हूँ....-
मैं कभी नष्ट नहीं हो सकती
तुम्हारे हिस्से से
तुम चाहो तो भी नहीं....
दूब जो हूँ....
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