ज़माने भर के लोग सरहदों पर मरते है मालूम नही वो क्या-क्या करते है मैने सुना है उनका पड़ोसी भूखा था और वो है की कश्मीर के लिए लड़ते है मेरी छोड़ो मैं तो किसी काम का नही देखो कैसे वो देश बचाने का काम करते है इतनी सी बात है की पेट उनका भरा है अगर ज़मीं पर रहकर जनाब आसमां की बात करते है ज़माना तुमसे कुछ कहता है अगर तो उसे तुम अनसुना कर देना तुम्हारी रोटी छीनने के बाद ही वो अपने हक़ की बात कहते है...
अगर मैं मरूं तो ज़ाहिर है किसी की आह भी ना निकले ना ही किसी को ख़बर हो सिवाए उसके ख़ुद के जिसे वो ख़ुद जानता था अकेले व्यक्ति के लिए कोई नाता नहीं होता जिससे वो अकेलेपन को ख़ाली कर सके इसलिए किसी अकेले के लिए अकेले ख़त्म हो जाना बेहतर है...