प्रेम की अभी तक बारिश नही हुई
कहीं पेड़ का बीज अंकुरित नही हुआ-
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शहरों के भीड़ में, जब तुम खो जाओगे
मैं कह रहा हूं कि, तुम वापस ना आओगे
हर शाम, हर रात गुजरती है जो नींद में
आंखे खुलेंगे तो देखना, सब भूल जाओगे-
ज़माने भर के लोग सरहदों पर मरते है
मालूम नही वो क्या-क्या करते है
मैने सुना है उनका पड़ोसी भूखा था
और वो है की कश्मीर के लिए लड़ते है
मेरी छोड़ो मैं तो किसी काम का नही
देखो कैसे वो देश बचाने का काम करते है
इतनी सी बात है की पेट उनका भरा है अगर
ज़मीं पर रहकर जनाब आसमां की बात करते है
ज़माना तुमसे कुछ कहता है अगर
तो उसे तुम अनसुना कर देना
तुम्हारी रोटी छीनने के बाद ही
वो अपने हक़ की बात कहते है...-
मैने अपने आप को दूसरी तरह से भी देखा है
ख़ुद से से परे हटकर तेरी तरह से भी देखा है-
मैं गिर चुका हूं बर्बाद हूं, आप जो कुछ भी कहिए
हो चुका मैं फ़कीर मुझको मेरा ही ख़ुदा समझिए-
जुल्फ़ों में उसको आदत थी उंगलियां फेरने की
कमबख्त ये लोग थे जो उसे इश्क़ समझ बैठे-
उसकी डायरी के हर पन्ने में ज़िक्र हुआ है तुम्हारा
तुम्हारे जाने के बाद भी वो तुम्हें खोजता बहुत था
बताना तुम सबसे मेरी मोहब्बत के हर एक फसाने
कोई पूछे तो बता देना अहल-ए-दर्ज़े का नकारा बहुत था-
अगर मैं मरूं
तो ज़ाहिर है किसी की आह भी ना निकले
ना ही किसी को ख़बर हो
सिवाए उसके ख़ुद के
जिसे वो ख़ुद जानता था
अकेले व्यक्ति के लिए कोई नाता नहीं होता
जिससे वो अकेलेपन को ख़ाली कर सके
इसलिए किसी अकेले के लिए
अकेले ख़त्म हो जाना बेहतर है...
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