स्त्री हु मैं।
रिश्तों को जोड़ने वाली कड़ी हु मैं।
विष्णु लक्ष्मी के रूप में पूजती भी हु और गृह लक्ष्मी के रूप में आग में झुलसने वाली भी मैं हु।
सरस्वती के रूप में विद्या देवी हु मैं, कन्या के रूप में अविद्या भी मैं हु।
शिव शक्ति कहलाती मैं ही हु , समाज से निष्काशित भी मैं ही हु।
बेटी के रूप में जन्मी, बहन , पत्नी , मां के रूप को निभाते,
ढलती है हर उम्र के पड़ाव में पहचान अपनी बदलते बदलते।
स्त्री ही है वो खामोशी से सारी कहानी बयान वो करती है ।
खुद को तपा कर संसार वो बसाती है।-
इश्क़ क्या है?
तुम।
मोहब्बत क्या है?
तुम से।
प्यार क्या है?
तुमसे शुरू और तुम पर खत्म।
मैं क्या हु???
जीने की वजह,
बारिश की बुहार,
खिलते फूल तुम से ही है,
खुशबू बहारों की तुम से ही है,
इंद्रधनुष के रंग तुमसे है,
सितारों की रोशनी की चमक तुम से है ,
चंद की चांदनी तुम से है,
अब बताओ कि किधर नहीं हो?-
नादान ज़माना हमे इश्क़, मोहब्बत सिखाता है,
शायद वो भूल जाता हैं कि यह इश्क़ मोहब्बत हम से ही कहलाता हैं।
यह हवाओं में खुशबू हमसे है,खिलखिलाती धूप मेरे लबों की हंसी से है,
यह बारिश की बूंदे मेरे केश से टपकती पानी की बूंदे ही तो हैं।
मुस्कराते निगाहे ही तो यह चंद सूरज है,
और वो है जो इश्क़ और मोहब्बतें को समझने की बातें करते है।-
मेरे मसले मेरी समझ से बाहर है,
मेरी ख्वाबों से दोस्ती , मोहब्बत से दिल्लगी है।
इस उधेड़बुन में उलझा और सुलझा सा हु मैं,
एक अंजान सा साया और अनकही बयान सा हु मैं।-
काश,
एक ख्वाइश पूरी हो जाए इबादत के बिना,
वो हमें माना ले हमारी मर्जी के बिना।
रूठे रूठे है हम तो भी मान जाएंगे,
गले लगा ले वो हमें हंस कर हम तो उनके ही उसी पल हो जायेगे।-
ख़ामोश यूं ही नही था कोई,
शब्दों का जमावड़ा था उसका,
किस्से थे उसके, कहानियां की दुकान थी वो।
एक अशर क्या निकला एक नज़र से,
तबाह उसको कर गया।
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थक चुकी हु उन सवालों से,
जिनका कोई तर्क नहीं।
वो महोबात अब है भी की ,
शायद नहीं ।
शब्दों के बाण तुम भी बहुत चलाते हो,
कम तो शायद कोई भी नहीं।
काश, वो साथ तो तुम निभा लेते।
अपने जेहन में मेरा ख्याल और साथ रख लेते,
सो जाते इसी उम्मीद में की तुम हो हर पल मेरे पास।-
मैं जो रूठ गई पिया,
मुझे जतन से तुम मना लेना।
चुंबन से मेरी मांग तुम सज्जा देना,
अपनी बाहों का हार बना तुम मुझे पहना देना।
गीतों के लहर बना तुम मेरे कदमों को चला तुम देना,
मुस्कान चेहरे की लाने के लिए कुछ फुलों की बारिश तुम कर देना।
रूठी हुई पिया मुझको तुम मना लेना....
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मौन हु,
चुप नहीं।
शब्दों का शोर सुन सके ऐसा किस को लाए।
बहती हुई भावनाएं कौन सुने।
जो निभा सके मेरी कहानी से सारे किरदार वो किधर से लाए,
अनकही प्रश्नावली को सुलझा सके वो जवाब कौन लाए।
रूह में उतर जाए ऐसा इश्क़ किधर से लाए।
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न आज़ाद हु ना ही कोई बंधन ,
टूट कर संभला होगा कोई,
बिखरा होगा हज़ार बार कोई,
लगा है अरसा लिखने उसे अल्फ़ाज़,
ऐसे ही कोई नहीं बना होगा शायर।
अशर बहे होगे भुला उसको चला होगा,
अपनी पहचान छोड़ नई गलियों से मिला होगा।
ऐसे ही कोई नहीं बना होगा शायर।-