Fauji Munday Sohanlal Munday   (फौजीमुंडे Sohanlal मुंडे)
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Joined 7 August 2018


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Joined 7 August 2018


मुझे अपने ख्वाबों से थकान मिली
शायद लोगों से न मेरी जुबान मिली l
खरीद सकूं खुशियों को अपनी मेरे दोस्त
पर दूर तक ना कोई ऐसी दुकान मिली l

ऐसा नहीं के ख्वाहिशों के पँख नहीं थे
कुछ हालात थे ऐसे के न उड़ान मिली l
हर दरिया को पार करने का हौसला था
जाल बिछाये किस्मत मेहरबान मिली l

अंधविश्वास का आज वही दौर देखा तो
रोते बिलखते हर मोड़ पर विज्ञान मिली l
राहें तो वही मंजिल तक जाने वाली थी
पर जाते जाते क्यों हमें ही वीरान मिली l

वक़्त तो कट जाता है अच्छा बुरा मगर
दुनिया ही कदम कदम पर बेईमान मिली
ये प्रेम प्यार किस्से किताबों मे मिला है
जिस्मानी आग से महोब्बत लहू लुहान मिली l

इंसानों की भीड़ में इंसानियत नहीं देखी
दम तोड़ती हर राहा मे गीता कुरान मिली l





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दीवारों से साये की उम्मीद किया नहीं
करते l
जब पानी हो मंजिल तो नींद पूरी लिया नहीं करते l

बैठे बैठे कहाँ बनते है कामकाज भला दोस्तों
कोई काम हो करना हौसला कम किया नहीं करते l

ये रास्ते जो दुस्वार तुम्हे आने लगे मंजिल के
अपनी नाकामी का बोझ दुसरो को दिया नहीं करते l

गुस्सा, नराजगी तो होती रहती है रिश्तों मे
रूठने के बाद बिल्कुल रूठें रहना तो प्रिया नहीं करते l

जिन्दगी से भागना फितरत नहीं इंसान की,
मरने वाले के बाद क्या लोग जिया नहीं करते l

सौ रंजिश भी हो तो क्या, मुनासिब तो नहीं है
के किसी आंगन का बुझाया कभी दीया नहीं करते l

फौजी आ जाये गर तेरी महफ़िल मे कोई वाइज
अकेले अकेले ही फिर जाम पिया नहीं करते l

फौजी मुंडे सोहन लाल मुंडे



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वो मेरी ख़ामोशी को देखना जानता है
मेरी फ़ितरत मेरा आईना जानता है l

हाल ए दिल बता तो दूँ मगर किस से कहूं
कोई मिला नहीं जो पूछना जानता है l

पेशानी पे गमों की सिलवटे तो है मगर
ये दिल हँस कर गुजरना जानता है l

नादानियाँ करने की इक उम्र है जनाब
मगर कौन भला उम्र भूलना जानता है l

के जिन्दगी से भी कोई शिकायत नहीं
कोई मेरी तहरीर को समझना जानता है l

मेरी महफ़िल मे दुश्मन का एहतराम है
फौजी,दुश्मन को दोस्त मे बदलना जानता है l

—–फौजी मुंडे सोहनलाल मुंडे

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जिंदगी से यही शिकायत है
कि मुझ पर इसकी इनायत न रही l

जब बिछड़े हैं मेरे अपने मुझसे
रूठें सारे सपने मुझसे
गमों का ऐसा पहाड़ टुटा
बाद जीने की कोई निहायत न रही l

गर्दिशो मे सितारे रहे तमाम सारे
भूल जाने लगे मेरा नाम सारे
तन्हा तन्हा सा रहता रहा, जैसे
जिन्दगी मे कोई नियामत न रही l

----फौजी मुंडे सोहनलाल मुंडे






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देश बना
एक जंगल


कैप्शन मे पढ़े,,,,,,

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दिल का आलम उसे ऐसे बताया
आँखों से कहा खमोशी ने सुनाया l
कोई पुराना ख़त मिला मुझको
उसमे लिखा था कब समझ आया l

मेरे दोस्त तेरा जो दोस्त बना है
दोस्ती का रंग मैंने था उसे लगाया l
हर चीज़ बिकती दाम होना चाहिए
वक़्त बीतने पर वक़्त ने बताया l

दुनिया तेरी फितरत को न समझे
अपना भी देखा होता मैंने पराया l
साँसो को रोक लेता हूँ कभी कभी
जब रूबरू होता मुझसे मेरा साया l

गुजरा हूँ रात ख़्वाबों के जंगल से
नींद मे जब उसे ख्यालो मे सजाया l
मेरे जिस्म से रूह अभी जुदा नहीं
बदन की नस नस मे वो यूँ समाया l

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वो लड़की जो कल थी
आज वो ही लड़की क्यों कोई लाश है,
कैसे हुआ किसने किया
क्यों किया ये
प्रश्न क्या कोई खास है l

सवाल तो आखिर ये है क्यों होता आ रहा है ऐसा
हम, तुम मे से ही होता है
कोई आस पास अमानुष जैसा

कैसे आता है दुस्साहस इतना
किसी की आबरू से खेलने का,
दरिंदगी की सारी हदों को कर पार
उसे दर्द मे धकेलने का l
क्या ये प्रशासन की कमी है,
क्यों अपनी बहिन बेटियों की आँखों मे नमी है l
निशब्द हूँ क्या बोलो,न्याय को किसके हाथों से तोलूँ l
मानुष ही अब अमानुष है
,न्याय को भी मिलता नहीं न्याय वाला धनुष है ll
Fauji मुंडे सोहन लाल munday

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मै कैसे करूँ अपने सपनो को साकार
हर तरफ हर जगह होती रोज मेरी हार l

दिल मे डर है बसा वही हर रोज वाला
हर दिन बलत्कारों का सुन बोलबाला l

आबरू को बचाऊँ या
ख्वाबों को मिटा दूँ
हैवानों की इस बस्ती मे
कैसे खुली हवा लूँ l

हर वक़्त गुजरता है
अब तो ऐसी कितनी परेशानी मे
जँहा बच्ची भी नही महफूज
वँहा उनका क्या
जिनके कदम है जवानी में l


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उसने ख़ुद को लिखा
किताबों के पन्नो मे
बीते हुए कल के ख्वाब
सजाये थे कुछ लम्हों मे l

उसने लिखा अपनी,
खमोश, मोहब्बत का अफसाना
चुपके चुपके से
कैसे बीते वो लम्हों मे जमाना l

अब जरा जरा सा याद कर
आँखों में नमी है
दिल की धड़कनो में हर वक़्त
महसूस होती कमी है l

उसने कहा था मेरे हाथों में हाथ लिए इंतजार करना मेरा
मैंने कहा इंतजार, एतबार आखिर यही तो है हर इश्क का अफसाना ll

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नारी का मन

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