है एक कैफ़ियत सी नस नस में लहू की तरह रूह भी है सहमी सी चोट खाई है कुछ इस तरह। बेबसी ने बाँघ रखें हैं कदम कुछ ज़िम्मेदारी हैं, कुछ खोफ-ए-खुदा सब्र का घूंट भी कितना पिए कोई जब जीने की ही ना हो कोई वजह। नींद, सुकून, चैन सब बेवफा हो गए परछाई से भी अब हम तन्हा हो गए भूल ना सकेगा दिल यह तबाही अपनी भरोसे से खेला है किसी ने मेरे इस तरह।
बहुत टूट चुकी हुँ और तोड़ने की इजाज़त नहीं दूंगी, बहुत मुश्किलों से सम्भल रहीं हुँ और ठोकर नहीं लूँगी, ए ज़िन्दगी बहुत खेल गया तू मेरे साथ, और खेलने के मौके नहीं दूँगी।
हर शख्स काबिल-ए-एतबार नहीं होता, टुट जाए जो इमारत तो उस पर घर नहीं बनता । वफा के धागों से पनपते हैं रिश्ते में मुहब्बत, बिखरे हुए पत्तों से दोबारा कभी पेड़ नहीं बनता ।
तेरी हुँ मैं, यह कहते कहते तू खुद किसी और का हो गया, भ्रम था ये मुहब्बत नहीं, इसलिए तो चूर चूर हो गया। ज़िनदा होकर भी मैं अब ज़िनदा कहाँ हुँ, जब से मेरे भरोसे का तूने सौदा कर दिया।
वह जो तन्हा कर देते हैं दुसरे को, क्या उनका जज़बातो से वास्ता नहीं होता। वह जो दगा देते हैं भरोसे को, क्या उनका ज़मीर उन्हे नहीं सताता। वह जो भुला देते हैं किए हुए वादों को, क्या उनका यादों से कोई नाता नहीं होता।
Jisse ki thi ujaley ki ummeed maine, Usi ne chingari banke mera aashiyan jala diya. Wafa ki chahat liye har dard ko saha jiske liye. Usi ne dil ko zakhmo se challi challi kar diya.