farhin   (Farhin)
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Joined 20 June 2019


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13 JAN AT 21:11

اظہار پہ بھاری ہے۔۔۔ خاموشی کا تکلم
حرفوں کی زباں اور ہے۔۔۔ آنکھوں کی زباں اور

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19 AUG 2024 AT 0:34

धीरे धीरे जब् लगने लगा वो मेरा है,
दिल को पुराना हादसा याद आने लगा।

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19 AUG 2024 AT 0:18

जब रिश्तो की हकीकत से पर्दा हटने लगता है,
दिल हर चीज़ से तब डरने लगता है।

कोन अपना, कोंन पराया, कोंन जान, कोंन अनजान,
वक़्त बुरा हो तो साया भी दस्त छुड़ाने लगता है।

कहने को कहते है की समझते है हमे बेहतर लोग,
हा, मगर कौन यहा दिल के ज़ख्मो की खबर रखता है।

बीत जाता है यू तो हर सही व गलत वक़्त "फरहिन"
दिल ओ ज़हन मे मंज़र वो हमेशा के लिए छप जाता है।

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17 MAY 2023 AT 1:23

अज़ियत ए ज़िन्दगी की कहानी है ये आँखे,
युतो हर तस्वीर मे तबस्सुम की लाली सजती है।

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17 MAY 2023 AT 1:23

अज़ियत ए ज़िन्दगी की कहानी है ये आँखे,
युतो हर तस्वीर मे तबस्सुम की लाली सजती है।

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24 FEB 2023 AT 9:20

ज़िंदगी के सफर मे हमनें यही सिखा है,
कोई मुख़लीस नही कोई अपना नही होता है।

कोई कैसे इतना पत्थर दिल होता है,
औरो को रुलाकर खुद चैन से सोता है।

अपने अंदर की लड़ाई से कोई कैसे लड़े,
अपने अंदर की कफस् से कोई कैसे निकले,

दिल् ए नादान बेकरारी ओ बेसुकूनी मे है
कितना मायूस कितना तन्हा ओ माज़ूर है,

हार जाते है मुकद्दर से दिल लगानेवाले
नसीब खुशियों से मोहब्बत को संजोता है।

कितनी खुश्तर नज़र आई फरहीन सबको,
कोई क्या जाने की अंदर कितने तूफान है।

ज़िंदगी के सफर मे हमनें यही सिखा है,
कोई मुख़लीस नही कोई अपना नही होता है।

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16 DEC 2022 AT 23:33



पलभर ठेहर के सोचा तो तन्हा खुदको पाया
हकीकत से वाबस्ता होकर फिर अश्क़ बहाया

खुलुस से सजाते रहे जिसके मकान को हम
क्या कहे उसीने आतिश ए दरिया मे डुबाया

सदाकत ये रवा है की ए रब्बे जुल जलाल
रंजो गम मे भी होठो पे तबस्सुम को सजाया

मुर्दार क्या बया करे अपने गमो को मालिक
बंदो ने हमे तेरे जहामे बहुत है सताया





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24 NOV 2022 AT 15:48

अज़ीयत ए ज़िंदगी की कहानी है ये आँखे
यूँ तो हर तस्वीर मे तबस्सुम की लाली सजती है

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20 APR 2022 AT 1:16

Ek ladki...

Wo kitabo ke khumar me khoi hui..
Wo sapno ki vadiyo me soi hui...
Kabhi shayari ke zoq me gum...
Kabhi duniya ki bheed se gum...
Kabhi hadse bhi zyada suljhi hui...
Kabhi khud se bhi rehti uljhi hui...
Wo muhabbato pe marnewali...
Wo talkh lehzo se darnewali...
Kitabo ki tarah rakhti hai kai alfaaz
Khamoshi zabt kar chupati hai kai raaz..
Wo shararti sa lehja,wo meetha sa saaz
dilme rakhti hai jo khwahish e parwaz....




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6 APR 2022 AT 23:48

भूले है रफ्ता रफ्ता उन्हे मुद्दतों मे हम
किश्तो मे खुदखुशी का मज़ा हमसे पूछिए जनाब।

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