दिल से, दिमाग से, ज़हन से, बातों से कहां कहां से निकालोगे,
मैं फिर वहीं आ जाऊंगा तुम जहां जहां से नकालोगे,
मुझे भूलने की चाह में बार बार याद करोगे,
मैं वो लफ्ज़ बन जाऊंगा जो तुम ज़ुबां से निकालोगे,
तुम बेशक मिटा दोगी मेरा हर निशां,
मगर मेरा ज़िक्र तुम कैसे अपनी दुआ से निकालोगे,
तुमने हर गजल में लिख रखा है नाम मेरा,
मुझे पहले कौनसी दास्तां से निकालोगे।-
पता नहीं ये मेरी बद्नसीबी है या किसी गुनाह की सज़ा,
कि मेरे ज़िन्दा रहते उसे कोई और अपना कहता है!-
कहां तक गिनाएगी तू मेरी बुराइयां दुनिया को,
लोग बोलेंगे कोई अच्छाई गिना, तो बात बने।-
आज के दौर में किसी की इज्जत बचाना,
उसकी इज्जत बर्बाद करने से ज़्यादा बड़ा गुनाह है।-
मुझे भीख में मिला वो शख्स भी बेवफा निकला,
जिसको पाने के लिए मेरा दम कई दफा निकला,
क्या कहूंगा जब लोग पूछेंगे मुझसे,
बिना आग के कहां से धुआं निकला,
जिसकी इज्जत मुझे सबसे प्यारी थी जहां में,
वो शख्स मेरे इस एहसान से बुरा निकला
जब उसको पता लगेगा उसने क्या खोया है,
तो मुंह थपथपाएगी सोचेगी मेरी ज़िन्दगी से ये क्या निकला।-
तेरा हमसफ़र बिल्कुल तेरे जेसा हो,
न कि कोई मेरे जेसा हो,
हर सफ़र मे तेरा हाथ पकड़कर चले,
हर उदासी को तेरी खुशी मे बदल दे कोई ऐसा हो,
तुझे अपनी पल्को पे सजा के रखे,
तू जेसा दुआओ मे मांगे वह बिल्कुल वेसा हो,
हर काम मे तेरे जेसा हो,
न कि कोइ मेरे जेसा हो!-
सिर्फ रूप ही नहीं जिस्म भी झंझोड़ा गया मेरा,
फिर एक दर्द से रिश्ता जोड़ा गया मेरा,
मुझे एक शख्स को तोड़ने के लिए,
कई बार भरोसा तोड़ा गया मेरा,
किसी के कांटों से भरे दामन की खातिर,
फूलों से भरा दामन छोड़ा गया मेरा,
कल तलक साथ चलने का इरादा था उसका,
बस आखिरी पल में रास्ता मोड़ा गया मेरा,
दुनिया से जन्नत का रास्ता तय करना था मुझे,
जहन्नुम से यह रास्ता जोड़ा गया मेरा।-
इस तरह दिल पे मेरे शिकार क्यों किया,
जब निभा नहीं सकती तो प्यार क्यों किया,
हमारे ही आंसुओ में डूबा के मारना था हमको,
तो समझ ये नहीं आया, इतना इंतजार क्यों किया-
जब तुम्हारी ही जुबान से मेरी खिलाफत के लफ्ज़ झड़ रहे थे,
ऐसे आलम में मैं खुद को गुनाहगार क्यों न कहता-
हमारी आदत है मिट्टी के कच्चे मकानों में रहने की,
इन आलीशान महलों ने हमें सांस नहीं आएगी।-