उससे बात तो होती है पर कभी खुलकर नहीं होती
डरता हूँ उसके दिल में मेरे बारे में जाने क्या निकले
वो अच्छा लगता है,उस पर भरोसा करूँ दिल भी चाहता है
फिर सोचता हूँ,कहीं ऐसा न हो वो भी औरों जैसा निकले-
तेरे वादों पर कहाँ तक ये दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मेरी आस टूट जाए
-फ़ना निज़ामी कानपुरी-
सुलझ जाता हर मसअला वो कुछ बात तो करते
पर हमसे दूर जाना था सो चुप्पी ओढ़ ली उसने-
कुछ अनकहे अहसास कभी लब पर नहीं आते
बताना लाख चाहो लेकिन बतलाए नहीं जाते
भूल जाने लायक होते हैं जो लम्हे
दिल से उन्हीं लम्हों के साए नहीं जाते
अना हो जिनकी बड़ी और दिल बहुत छोटे
उन लोगों के आगे तो हाथ फैलाए नहीं जाते
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शीशा हो,सपना हो,कोई वादा हो या दिल हो,अब टूटने वाली चीज़ों के सहारे तो ज़िन्दगी बसर नहीं होती
वैसे तो मेरी हर बात का पता रखते हैं मेरे दोस्त
लेकिन जब दर्द में होता हूँ, उन्हें खबर नहीं होती-
थक चुका हूँ अब तो उस ख़्वाब का पीछा करके
हर उड़ान के बाद जिसके नए पंख निकल आते हैं
Really got tired of chasing a haunting dream
It grows new wings after every flight
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मोहब्बत में दिखावे की दोस्ती न मिला
तू गर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला
खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
एक शख़्स को मांगा मुझे वही न मिला-
बुद्ध हो जाने का अर्थ है जिसने सब कुछ जान लिया है और जिसके लिए कुछ भी जानना शेष नहीं है।अब प्रश्न यह है कि मनुष्य सर्वज्ञ कैसे हो सकता है? सर्वज्ञ तो सिर्फ़ परमात्मा ही है और मनुष्य परमात्मा नहीं हो सकता ; तो फिर राजकुमार सिद्धार्थ ने स्वयं को 'बुद्ध' ही क्यों कहा? पहली बात यह है कि 'बुद्ध' हो जाने के बाद उनका मानना था कि कोई परमात्मा नहीं है और प्रकृति और मनुष्य ही सब कुछ हैं,इसलिए मनुष्य के लिए यही पर्याप्त है कि वह दृश्य जगत और विशेषकर स्वयं को पूरी तरह जान ले और जो ऐसा कर लेगा वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् बुद्ध हो जाएगा।अब यह बात तो स्पष्ट है कि बुद्ध ने परंपरागत लीक से हटकर सोचने की हिम्मत की जिसे scientistific temperament कहा जा सकता है।परन्तु मेरा मानना यह है कि 'महान चिन्तक बुद्ध' भी आखिर
थे तो एक इंसान ही... इस बारे में आपकी अपनी अलग सोच हो सकती है,आपके विचारों का स्वागत है।-
ये झुकीं झुकीं सी नज़रें ये खिला खिला तब्बसुम
इस दिल में एक उजाला सा मेहमान हो गया
बोझल बेरंग जीवन में यूँ लगने लगा कि जैसे
कुछ और रोज़ जीने का सामान हो गया-
किसी का साथ ज़रुरी है
हर ग़म,हर दर्द को भुला दे वो रात ज़रूरी है
लब खामोश रहें,दिल की धड़कनें बातें करें
सब दर्द जिसमें बह जाएं आँखों से वो बरसात ज़रूरी है
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