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मुझको मेरी तस्वीर पुरानी चाहीये
उस्पर लिखी हुयी कहाणी नई चाहीये
वो सिकंदर बना हे किसीं का हक मारकर
मुझको कतरा भी मेरे नसीब का चाहीये
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इतना उदास उदास रखा हे खुदको उसने
खुशिया मिळकर उससे उदास होती हे
किसीं को अजमाकर हमारे बारे अंदाज ना लगा
हमने खुषीयो की दहेलिज पर उदासी बांध रखी हे-
उसके वक्त को काटा हे मेरे वक्त ने
कभी सोचा नही नफा हे या घाटा हे
हम तो उतार देते हे रीश्तो को खून मे
हमे दोस्ती का यही मतलब समज आता हे-
हँसी यु ही नही लबोपर
पाले हुये हे दोस्त
हम आंसुओ को हसाने
का हुनर रखते हे-
फिरसे लौट आया कब्रस्तान की
तन्हाईयो मे मै
अभी अभी एक दोस्त लौट गया
दफनाकर मुझे-
ये सच हे मैं किसीं के साथ नही रेहता
मुझसे मिल्ने वाला मगर तन्हा नही रेहता
एक मुद्दतसे वोह अपने बारे मे केहता हे
फिर तमाम उम्र वोह खुदका भी नही रेहता-
कितना अजिब हे कुर्सी का नशा
बैठणे के बाद"मैं" दिखाई देता हे
उनके हर मश्वरे मे शामिल थे हम
उरुज आणेपर कम दिखाई देता हे
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