"है माह-ए-रमज़ान के आख़िरी अशअरे में नेमते बहुत
है इसमे इक शब-ए-क़द्र, है उसमें ख़ुदा की रहमतें बहुत"
"है रोज़े, ग़िज़ा-ए-रूह, शिफ़ा-ए-जिस्म तो रज़ा-ए-ख़ुदा भी
है इसमें फ़वाईद-ए-दुनिया भी, है आख़िरत की बशारतें बहुत"
"खुलते है दरवाज़े आसमानो के, बरसती है रहमतें ख़ुदा की
है वो रहीम बड़ा कितना, है इसपर क़ुरआन में आयतें बहुत"
"हो जाती नर्म इसमे आग़-ए-जहन्नुम, रुक जाता है अज़ाब भी
फिर भी दिलो में हमारे रमज़ानो में ,इबादतों से है क़राहतें बहुत"
""है रमज़ान माह-ए-बख़्शिश ,है ख़ुदा का तोहफ़ा बड़ा बहुत
जो ना करा सका बख़्शिश, है फरिश्तो की उसपर लानतें बहुत"
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