तुम जरूरत भी मेरी पाँवों तले रखते रहे हो,
मैं तुम्हारी जिद को भी सर पर उठाये घूमती थी।-
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स्वयं के जीवन में किसी
की 'अनिवार्यता' इतनी भी नहीं होनी चाहिए कि वह,
'पराधीनता' में परिवर्तित हो जाए।-
लगायी गई मेरे कमरे में खिड़की,
दिखाया खुला आसमां इस तरह से।
इति शिवहरे-
किसी कुलवधू ने लांघीं मर्यादा की सीमाएँ, तब
हमने धरती को ढकते, वृक्षों का आँचल देखा है।
इति शिवहरे
#पर्यावरण_दिवस-
प्रेम को स्वाभिमान के समानांतर जबकि विश्वास के लम्बवत होना चाहिए....।
-इति-
संवेदनशील हृदय के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, "प्रयोगात्मक दौर में भावनात्मक रहना"
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श्राप सारे सह लिये वरदान पर रोये हैं हम।
संग उनके हर सुखद अनुमान पर रोये हैं हम।
मुस्कुराकर जब कहा-तुम ध्यान रखना, जा रहे
हाय! पहली बार उस मुस्कान पर रोये हैं हम।
इति शिवहरे-
नहीं इतवार से हैं हम नहीं त्योहार से हैं हम।
सहेजो उम्र भर जिसको न उस उपहार से हैं हम।
मुझे मालूम है कब्जा किसी दिन और का होगा,
तुम्हारी जिंदगी में बस किराएदार से हैं हम।
इति शिवहरे
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प्रार्थना में प्रीत का आभास लेकर लौट आए।
अनछुए अनुपम अतुल अहसास लेकर लौट आए।
सब गए नदिया तटों तक उनको शीतल जल मिला था,
हम गए सागर तटों तक प्यास लेकर लौट आए।
इति शिवहरे-
सभी के कर्म से बढ़कर सदा अपना करम लिखते।
खड़े हो देश की सरहद पे जो सेवा धरम लिखते।
झुकाकर सर हमेशा ही उन्हें ये इति नमन करती,
जो अपने खून के छींटों से वन्देमातरम लिखते।
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