कहीं छोटे से तिनके सा इस जंगल में, खो गया हूं मैं,
ख्वाइशें लाख थीं करने की, कुछ मशरूफ मगर हो गया हूं मैं,
तंबाकू फूकता हूं, बेबाक शराब भी अब बे-असर सी लगे,
हर शाम लिए जाम बिना अश्क खुद में रो गया हूं मैं,
ऐसा नही है की मौत काफी पसंद है मुझे, मगर,
इस जिंदगी से काफी दूर हो गया हूं मैं,
कभी थे मुस्कुराते लब जो खिलके और महकते थे,
उन एहसासों और ख़्वाबों को बिस्तर बना के सो गया हूं मैं,
याद भी नहीं के शुरू कब और क्यों किया था,
कयामत के वक्त जैसा धुत्त सुन्न हो गया हूं मैं,
तंबाकू फूकता हूं, बेबाक शराब भी अब बे-असर सी लगे,
हर शाम लिए जाम बिना अश्क खुद में रो गया हूं मैं ।
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