Er. Dnyanesh Tibude   (ज्ञानेश श्रावण तिबुडे)
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Joined 9 September 2018


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2 SEP 2021 AT 11:03

When I connect
the dots of my past,
seems like destiny
had plans for good.
But what happening
at the moment,
I'm blurred
to see any goodness.

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2 SEP 2021 AT 8:30

हम कितने सताए हुए हैं,
आखों से हमारे पूछना कभी।
ज़ुबाँ तो कमबख्त ऐयार है,
मुस्कुरा के ग़म परदा कर देगी।

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23 FEB 2021 AT 21:59

प्रेरणा...

कभीं हौसले डगमगाए, या सपनों से भरोसा उठ जाए।
या आए खुद पर तरस, या शरीर साथ छोड़ जाए।
सारी दुनिया सवाल उठाए, या लोग ताने लागाए।
गर कभी मन आराम फरमाए, और मंजिल धुंधली पड जाए।
एक ख़्याल ज़हन में तुम रखना।
एक सवाल खुदसे ये करना।
क्यों चुनी ये मंजिल और क्यों हमें इसे पाना हैं।
क्योंकि आदत नहीं हमें भिड मे गुम होने की,
बल्कि भिड की प्रेरणा बने आगे बढते जाना हैं।

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22 JAN 2021 AT 23:11

Choices...
I'm in dilemma,
to be or not to be.
The choices are not so fair,
opting any isn't in my dare.
Both are my love,
distinct and at two shores.
And I'm sailing in between,
unsure where to rove.
The jargon of thoughts,
asking me to compromise.
To stay and live today
or to sleep n live tomorrow.
The dilemma I'm in is,
to be the who loses his today,
or the one who sacrifice for tomorrow.
I don't wanna be either,
so I bridged the shores,
and living my life whole.

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28 JUL 2020 AT 16:16

वेडावला जीव ह्या पावसांच्या सरींनी,
जणू स्मित तुझे पाहून,
हर्ष यास झाले.

वेडावणारा गंध ही माती,
उधळत जाई,
स्पर्श तुझा गंधात,
सामावून वाहे.

थेंबा थेंबात रमते,
ती ऊब आठवणीची,
भेट तुझी माझी,
पुन्हा स्मरणात आले.

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13 JUL 2020 AT 13:06

कधी सांजवेळी, सूर्य मावळतीला असताना,
आपल्या आठवणींचा सूर्योदय झाला तर?

विस्मृत विचारांच्या डोहात बुडून,
विचारांच्या गरदीत मी हरवून बसलो तर?

सर्व घेतलेले चुकीचे निर्णय छळत,
मला पश्चातापेच्या दरीत ढकलू लागले तर?

शेजारी माझ्या बसुन, खांद्यावर मानेला विश्रांति देऊन,
हातात हाथ घेऊन, मला माफ करशील का?

कधी वाटलेच मनाला तर,
माझी होण्याची चूक पुन्हा एकदा करशील का?

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7 DEC 2019 AT 19:42

दिन हो या रात
चाहे कोई ना हो तेरे साथ
तू बढ़ता चल...
हो तूफान या आँधी
या पर्वतों से हो सामना
चट्टानों को चीरता
तू बढ़ता चल...
अंधकार हो आगे
तो सूरज सा तू जल
तूफानों को तू
कदमों तले मसल
तेरे कदमों के निशान
तेरा इतिहास बताएगी
रख हौसला और हिम्मत
कदम उठा तू बढ़ता चल...
ना मुडना कभी
ना झुकना कभी
पैर जमा बस बढ़ता चल
कभी थके अगर
उस मंजिल को देखना
सवाल खुद से कर के
जवाबों को ढूंढना
है कांटों से भरी
तेरे सपनों की डगर
कांटो को रौंधता
राह बना बढ़ता चल....

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2 OCT 2019 AT 14:34

Be patient,
Everything comes according to their time.

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17 SEP 2019 AT 7:45

बेचैन रातें...

निंद‌ एक नशा हैं।
उसे पाने के लिए हम,
घंटों खुद को सहलाते हैं।
पर ख़्वाब अधुरे रहकर भी,
निंद उड़ती क्युं नहीं?

ख़्वाब एक नशा हैं।
रंगीन ख़्वाबों को जीने के लिए हम,
निंद के भंवर में गोते लगाते है।
पर मंजिल से दूर रहकर भी,
ख़्वाब जगाते क्युं नहीं?

मंजिल एक नशा हैं।
आख़री सीढ़ी चुमने को हम,
हर सीढ़ी की दौड़ लगाते है।
पर थक कर बैठे रहकर भी,
मंजिल पुकारती क्युं नहीं?

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11 JUL 2019 AT 10:09

स्वप्नांच्या महासागरात खोलवर दडलेल्या
निद्रेच्या मायाजाळात अडकुन पडलेला
मला तारत खऱ्या स्वप्नांसाठी लढायला
किनारी आणतो,
रोज...

त्या महायुद्धाच्या कसोटीवर
सिद्ध व्हायला
तालिमीत धडे गिरवतो,
रोज...

लढतो, जिंकतो,
तर कधी
रक्तात माखुन अनुभव घेतो.
दर अनुभवाचा पाया रचत
पायरी यशाची चढतो,
रोज...

शिदोरी विश्वासाची पाठीस बांधुन
नशिब बदलण्याचं खटाटोप करत
वेड्यागत स्वप्नांचा पाठलाग करतो,
रोज...

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