❤पुकार❤
बस एक बार पुकार लो
पास होगें वहीं
याद कर रहे हो जहाँ
पा जाओगे वहीं--
महक जायेगा तन
बहक जायेगा मन
कोई क्या करे
जब पास होगें वहीं--
दूर रहने की कैसी चाल है
जान जाओगे क्या हाल है
छटा निखरे जायेगी
बिखर जायेगी वहीं--
चाहतों का सिलसिला
कब खत्म हुआ
दूर जा के भी
आना जाना है वहीं--
अब तुम्हीं बताओ
कैसी शिकायत आपकी
हरदम पास हैं खड़े
मिल जायेंगें वहीं--।
30/1/2024
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*होमियो पैथी, साहित्यिक एवं तकनीकी पुस्तको को पढना,
*तकनीकी, सामयिक घटन... read more
❤विचार❤
जी करता तुमसे प्रेम करें
अन्जाना रिश्ता स्वीकारोगे
कहते हैं लोग इस दुनियाँ के
प्रेम कोई रिश्ता ही नहीं--
फिर कैसे हम कहते
तुमसे प्रेम हम करते हैं
चन्द जैविक क्रियाओं को
हम प्रेम कह सकते नहीं --
नैसर्गिक आभास कहाँ होता
संसारिक दुविधा में जीते हैं
कुछ क्षण मिलते जीवन में
आभास बोध कर सकते नहीं--
सच में टटोला जब खुद को
पाया कुछ भ्रम में जीते हैं
जो लगता था प्रेम कभी
शनैः शनैः क्या घटता नहीं--
कालचक्र की गति सब कुछ
तन मन में पैदा करती है
जैविकता को जीते जीते
काल संग क्या घटती नहीं--
लौकिक रीति निराली लगती
आती जाती बहती रहती
अलौकिक कब मिल पाती
ये हमको पता नहीं--
फिर हर बार पनपता क्यों
जैविकता क्या प्रमाणित होती नहीं
सृष्टि में खेल सर्जन का चलता
फिर प्रेम कोई रिश्ता क्यों नहीं--।
23/1/2024-
कभी तो वक्त दो हमको
कुछ लम्हें हमारे हों
ना मौका मिल पाये बतलाओ
कुछ लम्हें तुम्हारे हों--
2/1/2024
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हर बार मुझको
जीने की नसीहत न दो
ये दोस्त!मुझको
दोस्त कहने का हक न दो--
क़ाबिल नहीं तुम्हारे
ना-क़ाबिल रहने दो
हरगिज़ न भूल पाऊँगा
दरिया को समन्दर होने दो--
हम भी बहुत रोये
तुमसे मिलने के बाद क्यूँ
जीने का सलीका नहीं
कहते हैं लोग,यूँ बहते क्यूँ हो--
बस इस तरह से रोना
कोई हल नहीं
रोने का सलीका
कोई सांत्वना नहीं--।
9/1/2024
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❤छल❤
जो पल चुप
कैसे छल जाता
देर हो गयी
पता ना चलता--
पावन प्रीति रीति प्रिय
जुगत ना जीवन करता
चित्त विकल कर
कैसे खुद खोता---
बूढत डूबत मन प्रेम में,प्रीत की रीत निभाता
जो पल चुप ,कैसे छल जाता--
कालगति कोई न जाने
सुमति कुमति कोई न माने
जब जैसा मिल जात जगत में
वैसे ही छल जाता--
नहिं प्रकाश मिलत राहों में
सुभग अंग है चुभता
कोमल-कोमल गात यौवन का
गहरे घाव दे जाता--
लागत व्यापत सह न पावत,दूरदृष्टि ना पाता
जो पल चुप,कैसे छल जाता--
घुटता जीता तड़प के रहता
बिना अगन जल जाता
कौन सँभाले नेह की पीड़ा
काम बाण जब लगता --
जलत काम त्रिनेत्र से,वो! नयन कहाँ से लाता
भस्म रमा कर बैठें कैसे,न योगी कहलाता
छलत छलावा गावत गीता सत्य खोज न पाता
जो पल चुप,कैसे छल जाता--।
9/1/2024-
❤तेरे करम ❤
जिसे दिल चाहता है मिलते नहीं है
सूनी सूनी राहों मेंआते जाते नहीं है
नजरें बिछा के प्रतिक्षा में बैठे हम
नज़र दूर तक वे! आते नहीं हैं--
ये कैसा करम जो चाहो ना मिले
मगरअनचाहे लोग मिलते बहुत हैं
कहें क्या यही है रहम तेरी मौला
तेरे करम मुझ को तड़पाते नहीं हैं--
चलते हैं गिरते हैं उठाते तुम्हीं हो
हर बार जमाने से बचाते तुम्हीं हो
बढ़ने का हौसला मिलता कहाँ से
इसीको हम क्यों सोचते नहीं हैं---
तेरे करम के जल्वे बहुत हैं
बिन माँगे भी देते बहुत हैं
समझते क्यों ना हम रहमत तुम्हारी
रहबर बिना हम चलते नहीं हैं---
तेरे करम को गिनायें कहाँ तक
मुश्किलों में भी हम चलते जाते हैं
तोड़ कर जंजीरें मुश्किलों की
तेरी रहम के बिना हम चलते नहीं हैं--
कृपालु दयालु बनाओ न भालू
तेरी ऊँगलियों पे हम बहुत नचाते हैं
पग-पग पर ऊँगली थामे रहते
अपने बन्दों!को कभी छोड़ते नहीं हैं---।
7//1/2024-
कभी पूछा है किसी से
कैसे जी रहे हो
तुम्हें तो चाह पैसों की
पैसों हित जी रहे हो--
कौन हो जो
ब्लेकमेल करते हो
पहले बढ़ावा दे
फिर वसूलते रहते हो--
7/1/2024
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रात की तकदीर में
खोना लिखा है
समझ लो यूँ जैसे
ओस को रोना लिखा--
कौन मेट सकता
जो होना लिखा है
ये सोच करके
क्या जीना लिखा है--
वक्त के चक्र को
हम भी मानते हैं
मगर क्या करें चुप
हो जीना लिखा है--
नहीं सीखा हमने
हालातों में रूकना
रूक-रूक चल
यूँ,ही चलना लिखा है--
गिर भी गये तो
क्या गिरना ना लिखा है
जो ना गिरे क्या
उठ के जीना लिखा है--
बस एक सीमा
उठने की होती
उठ के नीचे ही
आना लिखा है--
सच है धरा का
स्वीकार कर लें
उठ कर गिरें
गिरके उठना लिखा है--।
12/12/2023-
वो!रात कहानी कहती है
जो ताने-बाने बुनती है
हर जाऩ की कीमत होती
अन्जान कहानी बुनती है--
रेशे-रेशे बिखर रही
फिर भी चुप न रहती है
उधेड़ी तुरपन बुनने के लिये
सुई-धागा ले के रहती है--
अन्जान थे हम दोनों
जानने की कोशिश रहती है
आगे बढ़ने के ख़ातिर
पहचान मिटाती रहती है--
उष्म,शीत,वर्षा वाली
काली,अँधियारी ,कुहारे वाली
जीने के लिये मरती निशदिन
घटती-बढ़ती रहती है--
ये झूठ परिधान पहन कर
जग से कब जीती है
जीने के लिये मिटना प्रतिदिन
जीती मरती रहती है--।
10/12/2023
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❤पागल करे फुहार ❤
बरस गया बादल बेमन,पागल करे फुहार--
तेरे बिन मुरझा गया मन,का पर करूँ सिंगार--
कारी बदली उमड़ घुमड़,
कर गयी सोलह श्रृंगार
दमकी दामिनी ऐसे जैसे,
दमके बिन्दिया से प्यार---
बरस गया बादल बेमन,पागल करे फुहार--
तेरे बिन मुरझा गया मन,का पर करूँ श्रृंगार--
रिमझिम रिमझिम बदरी बरसे,
ठंडक पड़े अपार
रूक-रूक कर दादुर बोलें,
ठिठुर के रैना बीते यार
मन की पीड़ा न कोई समझे,
कामिनी काम लजावन हार
रूप राशि बिछी सेज पर,
कर रहीआँखियाँ चार-
बरस गया बादल बेमन,पागल करे फुहार--
तेरे बिन मुरझा गया मन,का पर करूँ श्रृंगार--
आवन काहे अबहुँ न आये,
सर्र सर्र चले बयार
कऊने वृक्ष तरे भीजत होहिं ,
सीमा पे हैं बाँके यार--
एक दरद मोरे होय हिया में,
दूजे बालम सीमा पार
तीजे घर की जुम्मेदारी,
कासे करूँ गुहार--
बरस गया बादल बेमन,पागल करे फुहार--
तेरे बिन मुरझा गया मन,का पर करूँ श्रृंगार---
रूक जाओ तुम कारी बादरिया,
करती हूँ एतवार
दया दृष्टि साजन पर रखियो,
बस यही मनुहार --
जा के कह दो मोरे साजन से,
करती हूँ इन्तजार
जब आयें घर,ऐसे बरसो
जायें ना इस बार--
बरस गया बादल बेमन ,पागल करे फुहार,--
तेरे बिन मुरझा गया मन,का पर करूँ श्रृंगार--।
15/1/2021
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