शैतान के दिल पर चलता हूं सीनो में सफर करता हूं उस आँख का क्या बचता है मैं जिस आँख में घर करता हूँ। जो मुझमे उतरे है उनको मेरी लहरों का अंदाज़ा है दरियाओं में उठता बैठता हूँ सैलाब बसर करता हूँ मेरी तनहाई का ज़हर तुम्हारी बीनाई ले डूबेगा मुझे इतने करीब से मत देखो, आँखों पे असर करता हूँ।।
अब लोगों से क्या डरना ये जहां ही नहीं है अपने साथ औरों की तो बात क्या करनी यहां,अपने ही नहीं हैं अपने साथ और तुम्हारी ईद तुम्हें मुबारक मेरे तो खुदा ही नही है मेरे साथ